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________________ वर्ग-प्रथम ] (३६) [ निरयालिका सूत्रम् - छाया-ततः खलु सा काली देवी मुहूर्तान्तरेण आश्वस्ता सती उत्थाय उत्तिष्ठति, उत्थाय श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्-एवमेतद् भदन्त ! तथ्यमेतद् भदन्त ! अवतिथ्यमेतद् भदन्त ! असंदिग्धमेतद् भदन्त ! सत्यः खलु भदन्त ! एषोऽर्थः तद् यथैतद् यूयं वदथ, इति कृत्वा श्रमणं भगवन्तं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा तमेव धार्मिक यानप्रवरं आरोहति, आरुह्य यामेव दिशं प्रादुर्भूता तामेव दिशं प्रतिगता ॥१८॥ पदार्थान्धयः-तए णं-तत्पश्चात् (णं वाक्यालंकार में), सा काली देवी वह काली देवी, महत्तन्तरेणं-मुहूर्त मात्र के अन्तर से, आसत्था-आश्वस्त -सचेष्ट होकर, उढाए उटुइ-दासियों आदि'द्वारा उठाने पर उठी, उद्वित्ता-उठ कर, समणं भगवं महावीरं-श्रमण भगवान् महावीर को, वन्दइ-वन्दन करती है, नमसइ-नमन करती है, वंदित्ता-वन्दना करके, नमंसित्ता-नमस्कार करके, एवं-इस प्रकार, वयासी-बोली, एवमेयं भंते-भगवन् ! आप जैसा कहते हैं वैसा ही है, तहमेयं भंते-आपने यथार्थ ही कहा है, अवितहमेयं भंते -भगवन् ! आपके वचन यथार्थ हैं, असंदिद्धमेयं भंते-भगवन आपके वचन सन्देह से रहित हैं, सच्चेणं भन्ते एयम-भगवन् आपत्रे वचन बिल्कुल सत्य हैं, जहेयं-ठीक वैसा ही है, जहेयं तुब्भे वदह-जैसा आप कह रहे हैं, तिकटुऐसा करके-कह कर, समणं भगवं महावीर-श्रमण भगवान महावीर को, वन्दइ-वन्दना करती है नमंसइ-नमस्कार करती है, वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दना-नमस्कार करके, तमेव -उसी, धम्मियंधर्म-कार्यों में ही प्रयुक्त होने वाले, जाणप्पवरं-उस श्रेष्ठ रथ पर, दुरूहित्ता-आरूढ़ होकर, जामेव दिसिं वाउब्भूया-जिस दिशा से आई थी, तामेव दिसिं-उसी दिशा में, पडिगया-लौट गई ॥१८॥ मूलार्थ-तत्पश्चात् वह काली देवी एक मुहूर्त के अनन्तर-अर्थात् कुछ क्षण बाद आश्वस्त होकर दासियों आदि के द्वारा उठाने पर उठ खड़ी हुई। उठ कर उसने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना-नमस्कार किया, वन्दना-नमस्कार करके वह इस प्रकार बोली-"भगवन् ! आप जैसा कह रहे हैं वैसा ही है, आपके वचन यथार्थ हैं भगवन् ! आपके वचन सन्देह से रहित हैं, बिल्कुल सत्य हैं, भगवन् ! आपके वचन, ठीक वैसे ही हैं जैसा आप कह रहे हैं। ऐसा कह कर वह श्रमण भगवान् महावीर को पुनः वन्दना-नमस्कार करती है और वन्दन नमस्कार करके (अपने साथ लाये हुए) उसी धार्मिक कार्यों में ही प्रयुक्त होने वाले श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ हो गई और आरूढ़ होकर जिस दिशा से आई थी उसी दिशा में लौट गई ॥१८॥ टीका-इस सूत्र में काली देवी के विश्वास के विषय में वर्णन किया गया है । जैसे कि जब काली देवी मुहूर्तान्तर के बाद सावधान हुई तब उठ कर भगवान् महावीर के प्रति कहने
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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