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________________ निरयावलिका सूत्रम् ] (३५) [ वर्ग-प्रथम छाया-ततःणं सा काली देवी श्रमणस्य भगवतः अन्तिकं एतदर्थं श्रुत्वा निशम्य महता पुत्रशोकेन व्याप्ता सती परशु-निकृन्ते व चम्पकलता धस इति धरणीतले सर्वाङ्ग संनिपतिता ॥१७॥ ___ पदार्थान्धयः-तए- तदनन्तर, णं-वाक्यालङ्कार में, सा काली देवी–वह महारानी काली देवी, समणस्स भगवओ-श्रमण भगवान् महावीर के, अन्तियं -पास से (उनके मुखार-विन्द से), एयमलैं-इस अर्थ (पुत्र-मरण के समाचार) को, सोच्चा–सुन कर, निसम्म-उसके सम्बन्ध में विचार करके, महया-बहुत भारी, पुत्त-सोएणं-पुत्र-शोक से, अफुन्ना समाणी--व्याप्त हुई, परसु-नियत्ता-कुहाड़े से काटी हुई, चम्पकलया विव-चम्पक लता, धस त्ति-धम्म करके गिर पड़ती है, वैसे ही कालीदेवी भी, धरणीयलंसि-भूमि पर, सव्वंगेहि- सर्वाङ्ग से, संनिवडियागिर पड़ी।।१७।। मूलार्थ-तदनन्तर महारानी काली देवी श्रमण भगवान् महावीर के मुखारविन्द से पुत्र-मरण के समाचार को सुनकर एवं कुछ विचार कर बहुत भारी पुत्र-शोक से ब्याप्त हुई कुल्हाड़े से काटी गई चम्पक लता के समान धम्म करके अर्थात् पछाड़ खाकर धरती पर सभी अंगों सहित गिर पड़ी।।१७।। ___टोका-इस सूत्र में कालीदेवी के शोक-विषय का वर्णन किया गया है। जैसे कि जय काली देवी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी के मुख से उक्त समाचार को सुना तब वह पुत्र के शोक से व्याप्त होती हुई, इस प्रकार भूमि पर गिरी, जैसे परशु द्वारा छेदन की हुई चम्पक लता गिर पड़ती है। परशु की तीक्ष्णता और चम्पक लता की सुकोमलता को लक्ष्य में रखकर सूत्र कर्ता ने काली देवी को इस उपमा से उपमित किया है। जैसे पुत्र-स्नेह की सुकोमल लता पर पुत्र-वियोग की तीक्ष्ण "धारा गिरी, तब वह देवी जिस प्रकार छेदन की हुई चम्पक लता गिर पड़ती है, ठीक उसी प्रकार सर्वाङ्गों से भूमि पर गिर पड़ी। इस सूत्र से सूत्र-कर्ता ने माता का पुत्र के प्रति कैसा स्नेह होता है यह सूचित किया है। मूल--तए णं सा काली देवी महत्तन्तरेण आसत्था समाणी उट्ठाए उठेइ । उठित्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ, नमसइ । वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-"एवमेयं भन्ते! तहमेयं भन्ते ! अवितहमेयं भन्ते ! असंदिद्धमेयं भन्ते ! सच्चे णं भन्ते ! एयमढे, जहयं तुम्भे वयह" ति कटु समणं भगवं वन्दइ नमसइ। वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ दुरूहित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ॥१८॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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