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________________ निरयावलिका सूत्रम् ] (३३) [बर्ग-प्रथम पुत्र काल कुमार को मैं जीवित देख पाऊंगी या नहीं ? भगवान कहने लगे-हे काली ! तेरे पुत्र काल कुमार का तीन सहस्र हस्तियों के साथ यावत् अर्थात् तीन हजार रथों, तीन हजार घोड़ों और तीन करोड़ सैनिकों को साथ लेकर राजा कूणिक के साथ रथमूसल संग्राम में संग्राम करते हुए मान-मर्दन हो गया है, उसके साथी वीरों का घात हुआ है, उसके (राज.) चिन्ह और पताका गिर चुके हैं, वह दिशाओं में अन्धकार करता हुआ. चेटक राजा के समक्ष और सम्प्रतिदिक् में अपने रथ से चेटक राजा के रथ के सन्मुख आ गया। तब चेटक राजा ने काल कुमार को सन्मुख आते हुए देख कर क्रोध में भर कर यावत् क्रोध से देदीप्यमान होते हुए धनुष को ऊंचा किया, उस पर बाण चढ़ा दिया। घनुष के चलाने के आसन पर बैठ कर कर्ण-पर्यन्त धनुष को खींच कर बाण छोड़ दिया। तब काल कुमार एक ही बाण से पर्वत-शिखर की भान्ति गिर कर जीवन से रहित हो मया, अर्थात् मारा गया। इसलिए हे काली ! तू कालगत कालकुमार को जीवित नहीं देख पाएगी, क्योंकि वह मारा गया है ॥१६॥ टोका-इस सूत्र में काल कुमार के विषय में वर्णन किया गया है। जैसे कि काली देवी ने भगवान महावीर से प्रश्न किया-“भगवन् ! मेरा पुत्र काल कुमार तीन सहस्र हस्ती आदि की सेना लेकर रथमुसल-संग्राम में गया है, "क्या वह जीतेगा ? या नहीं ? यावत् मैं काल कुमार - को जीते हुए को देख पाऊंगी या नहीं ?" तब भगवान महावीर ने उत्तर में कहा- "हे काली ! तेरा पुत्र काल कुमार तीन सहस्र हाथियों आदि को लेकर, यावत् कूणिक राजा के साथ रथ-मुसल-संग्राम में संग्राम करते हुए मारा गया है। जिसका वर्णन मूलार्थ में किया गया है, किन्तु निम्नलिखित शब्दों का भाव जान लेना चाहिए। जैसे कि – 'हयमहियपवरवीरघाइयणिवडियचिधज्झयपडागो', अर्थात् (हतः) सैन्यस्य हतत्वात्, मथितो मानस्य मन्थनात्. प्रवरवीराः-सुभटाः घातिताः-विनाशिताः यस्य, तथा निपातिताश्चिन्हध्वजाः-गरुडादि-चिन्हयुक्ताः केतवः पताकाश्च यस्य सः तथा, ततः पदचतुष्टयस्य कर्मधारयः। तथा 'मिसिमिसेमाणे' इस पद का यह भाव है कि वह क्रोध से देदीप्यमान हो गया। "सपखं सपडिदिसि रहेणं पडिरहं हव्वमागए। इन पदों का भाव यह है कि चेटक राजा के रथ की तरफ काल कुमार का रथ सामने आ गया, समान प्रतिदिक् से रथ सन्मुख हो गया।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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