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वर्ग-प्रथम ]
(३२)
[ निरयावलिका सूत्रम्
ओयाए-गया है, से-वह काल कुमार, णं भन्ते-हे भगवन् ! खलु-निश्चय पूर्वक, जइस्सइ-क्या जीतेगा ? नो जइस्सइ-क्या नहीं जोतेगा ? जाव-यावत्-जीता रहेगा या नहीं और शत्रुओं को पराजित कर पाएगा या नहीं, काले णं कुमारे - काल कुमार को, अहं-मैं, जीवमाणं-जीवित ही, पासिज्जा-क्या देख पाऊंगी, कालीति-काली देवी के प्रश्न को सुनकर, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर, कालि देवि-काली देवी से, एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे, काली एवं खलु - काली निश्चय ही, तव पुत्ते-तुम्हारा पुत्र, काले कुमारेकाल कुमार, तिहिं दंति-सहस्सेहि-तीन हजार हाथियों, जाव-यावत् अर्थात् अन्य युद्ध-सामग्री के साथ, कूणिएणं रन्ना सद्धि - राजा कूणिक के साथ, रह-मुसलं संगाम-रथ-मुशल संग्राम में, संग्गामे माणे युद्ध करता हुआ, हय-महिय-पवर वोर घाइय णिवडिय, चिधज्झय-पडागो - उसका मान-मर्दन हो गया है, उसके प्रधान वीरों का घात हुआ है, उसके पताका आदि चिह्न गिर चुके हैं, (वह) दिसाओ-सभी दिशाओं को, निरालोयाओ-अन्धकारमय-निस्तेज करता हुआ, चेट यस्स रन्नो-राजा चेटक के, सपक्खं-सन्मुख, सपडिदिक-एक दूसरे के सामने, रहेणंरथ पर बैठ कर, पडिरहं- राजा चेटक के रथ के सामने, हवं-शीघ्र ही, आगए-आ गया।
तए णं-तत्पश्चात्, से-वह, चेडए राया-राजा चेटक, कालं कुमारं-काल कुमार को, एज्जमाणं-आते हुए के, पासित्ता-देख कर, आसुरुत्ते-शीघ्र ही क्रोध में आकर, जावयावत् अर्थात् रुष्ट हो गए और क्रोध के कारण उनके होठ, (फड़फड़ाने लगे), मिसिमिसेमाणेक्रोध की ज्वालाओं से जलते हुए, धj-धनुष को, परामुसइ-सुसज्जित करने लगे, परामुसित्ताधनुष को सुसज्जित करके, उसुं-बाण को, परामुसइ-धनुष पर चढ़ाता है, वइसाहं ठाणं ठाईवैशाख स्थान, धनुष पर तीर चलाने की विशेष मुद्रा में बैठता है, ठाइत्ता-- और बैठ कर, आयय-कण्णाययं-कानों तक, उसुं-बाण को, करेइ-ले जाता है, करित्ता-और ले जाकर, कालं कमारं-काल कमार को. गावच्चं एक ही प्रहार से. कडाहच्चं-जैसे किसी यन्त्र विशेष से किसी पर्वत शिखर को गिराया जाता है उसी प्रकार बाण के एक ही प्रहार से पर्वत शिखर-जैसे काल कुमार को, जीवियाओ-जीवन से, ववरोवेइ- रहित कर देता है. अर्थात् मार देता है, तं कालगए णं काली - हे काली इस प्रकार कालधर्म को प्राप्त हुए, कालं कुमार-काल कुमार को, नो चेव णं-तू नहीं, जीवमाणं जीवित अवस्था में, पासिहिसिदेख पाएगी।
मूलार्थ-तदनन्तर वह काली देवी श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समीप धर्म को सुनकर और विचार कर. यावत् हृदय से प्रसन्न होकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी की तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा यावत् और वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार कहने लगी-भगवन् ! मेरा पुत्र काल कुमार तीन सहस्र हस्तियों के साथ यावत् रथ-मूसल संग्राम में गया है । हे भदन्त ! क्या वह जीतेगा ? या नहीं जीतेगा! अपने