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________________ आपने केवल ग्यारह वर्ष की अवस्था में ही सन्तत्व के पावन मन्दिर में प्रवेश पा लिया था। सम्वत् १६५१ आषाढ़ शुक्ला पंचमी को श्री-संघ ने बड़े समारोह के साथ पटियाला से तीस पैंतीस किलोमीटर उत्तर दिशा में अवस्थित !'छत बनूड" में आपने सन्तत्व ग्रहण किया। श्री शालिग्राम जी महाराज आप के दीक्षा-गुरु बने और महामुनीश्वर पूज्य श्री मोती राम जी महाराज आपके विद्या-गुरु बन कर आगम-सागर के मोती प्रदान करते रहे। अलंकरण-माला से अलंकृत भगवती सरस्वती की आप पर अपार कृपा थी, वह सदैव आपके स्मृति-सागर में ही निवास करती थी, आपको आगमज्ञता को सन्मानित करने के लिये पूज्य श्री सोहनलाल जी महा राज एवं पंजाब प्रांतीय श्री संघ ने सम्वत् १९६८ में अमृतसर नगर में आपको उपाध्याय-पद से विभूषित किया, क्योंकि तत्कालीन उत्तरी भारत में आप जैसा कोई आगमज्ञ मुनिराज था ही नहीं। सम्वत् १९९१ में दिल्ली के श्री-संघ ने आपको जैन-धर्म-दिवाकर अलंकरण से सन्मानित किया और तपस्वीराज श्री लालचन्द जी महाराज के सान्निध्य में स्यालकोट के श्री-संघ ने सम्बत १९६३ में आपको "साहित्य-रत्न" के अलंकरण से अलंकृत कर आपके प्रति अपनी श्रद्धान्वित कृतज्ञता प्रकट की। पंजाब प्रांत के आचार्य ___सं० २००३ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर जयन्ती के शुभ अवसर पर उत्तरीभारत के प्रतिष्ठित मुनिवरों ने बड़े समारोह के साथ आपको पंजाब श्री-संघ के आचार्य-पद की श्वेत चादर बड़ी श्रद्धा से प्रोढ़ाई। प्रधानाचार्य पद का सम्मान .सम्वत २००६ में अक्षय-तृतीया के दिन राजस्थान के सादड़ी नगर में सम्पन्न हुए बृहत् साधुसम्मेलन ने एक मन और एक मत से आपको श्रमण-संघीय आचार्य-पद प्रदान किया, जब कि आप स्वयं वहां उपस्थित नहीं थे। देवलोकवासी . लगभग दस वर्षों तक इस पद पर रह कर आपने समस्त श्री संघ को संगठित किया, एक सूत्र में बांधा और समस्त श्री-संघ को गौरवान्वित किया। माघ कृष्णा नवमी सम्वत् २०१८ (३० जनवरी १९६२) के दिन इस महान विभूति को देवों ने हमसे छीन लिया और आप देवलोक में जा विराजे। उनकी अप्रकाशित रचना निरयावलिका को सम्पादित कर प्रकाशित करने का जो महानं सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है उससे मेरी आत्मा अनन्त आनन्द की अनुभति कर रही है और करती पहेंगी। मेरा वही आनन्द "तुभ्यं वस्तु हे देव ! तुभ्यमेव समर्पये" के शब्दों में उनकी यह पावन कृति उन्हें ही समर्पित कर रहा है। साती स्वर्ण कान्ता (उपप्रवर्तनी) [ तीन]
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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