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निरयावलिका सूत्रम् ]
(२९)
[वर्ग-प्रथम
महावीर अपनी उपदेश रूपी दृष्टि से भव्य जनों की अज्ञानता की धूल को शांत कर रहे थे, वहां पर आई । आकर श्रमग भगवान महावीर स्वामी की तीन बार प्रदक्षिणा की। वन्दना नमस्कार कर परिवार सहित खड़ो हुई । सेवा करती हुई नमस्कार करती हुई उनके सम्मुख विनय-पूर्वक हाथ जोड़कर सेवा करने लगी।
टोका-इस सूत्र में काली देवो के विषय में वर्णन किया गया है। जब काली देवी ने रथ पर आरोहण किया तो उस से पूर्व पहले स्नान और बलि कर्म किया।
इस के विषय में वृत्तिकार लिखते हैं - "कयबलिकम्मा" ति स्वगृहे देवतानां कृतबलिकर्मा" अर्थात् स्वगृह में देवताओं के पूजन आदि कृत्य को बलो - कर्म कहते हैं, किन्तु यह शब्द. अर्धमागधी गुजराती कोश के ५७४ पृष्ठ पर तीन अर्थों में ग्रहण किया गया है-जैसे कि बलिकम्म, १. बलि कर्म शरीर नी स्फूर्ति माटे तेलादि थी मर्दन करवू ते, २. देवताने निमित्ते अपायते और ३. गृहदेवता पूजन। इस स्थान पर शरीर की स्फूर्ति के लिए तेलादि मर्दन ही सिद्ध होता है ।' कारण यह कि प्रौपपातिक सूत्र में स्नान की पूर्ण विधि का विधान किया गया है जिस में उल्लेख है कि स्नान के पूर्व तेलादि के मर्दन का विधान है। उस स्थान पर इसका विस्तार सहित वर्णन किया गया है, किन्तु वहां पर "कयबलिकम्मा" का पाठ नहीं है। इससे सिद्ध हुआ जिस स्थान पर स्नान विधि का संक्षिप्त वर्णन किया गया हो वहां पर तो 'कयबलिकम्मा' का पाठ होता है और जिस स्थान पर स्नान की पूर्ण विधि का वर्णन होता है उस स्थान पर नहीं । इसलिये पूर्व अर्थ ही युक्ति-युक्त सिद्ध होता है तथा कौतुक मंगल क्रिया और दुःस्वप्नादि के फल को दूर करने के लिये, प्रायश्चित्त किया। कौतुक शब्द से मषी-पुण्ड आदि का ग्रहण है और मंगल शब्द से सिद्धार्थ दही, अक्षत, दूर्वादि (दुब) का ग्रहण है। जैसे कि-कौतुकानि मषोपुण्ण्डादीनि, मंगलादोनिसर्षपदध्यक्षतचन्दनर्वांकुरादोनि । इतना हो नहीं उसने अच्छे सुन्दर वस्त्रों को पहन कर जो भार में अल्प किन्तु मूल्य में कीमती थे इस प्रकार के आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। फिर बहत से देशों से आई हई दासियों के वन्द के साथ परिवत होती हुई भगवान महावीर के दर्शनों के लिये उत्सुक हो रही थी।
सूत्रकर्ता ने 'बहूहिं खुज्जाहिं जाव' इन पदों से अनेक देशों की दासियों का वर्णन किया है। यावत् शब्द से अनेक देशों की सूचना दी गई है । वृत्तिकार ने उन देशों में उत्पन्न होने वाली दासियों के विषय में बहुत विस्तार से लिखा है।
उत्थानिका-तदनन्तर क्या हुआ ? अब सूत्रकार इस विषय में कहते हैं -
मूल-तए णं समणे भगवं जाव कालीए देवीए तीसे य महइमहालि. याए, धम्मकहा भाणियब्वा, जाव समणोवासए वा समणोवासिया वा १. स्नान के अनन्तर तैल-मर्द न तो लोक प्रसिद्ध नहीं है, सम्भवतः सुगन्धित तैलादि लगाना अर्थहो ।