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निश्यावलिका सूत्रम् ]
(२५)
[ वर्ग - प्रथम
सद्दावित्ता - बुलवा कर एवं क्यासी- और उनसे कहती है कि, भो देवाणुपिया - हे देवानुप्रियो खिप्पामेव- शीघ्र ही, धम्मियं - धार्मिक कार्यों में ही प्रयुक्त किये जाने वाले, जाणप्पवरं - सर्वश्रेष्ठ रथ, जुत्तामेव - अश्व - सारथी आदि से युक्त, उवठ्ठवेह - तैयार करो, उवठ्ठवित्ता- रथ को तैयार करके दास लोग, जाव - यावत् पच्चप्पिणंति - महारानी को अर्पित करते हैं - श्रर्थात् "श्थ तैयार है" यह निवेदन करते हैं ।
मूलार्थ - तत्पश्चात् काली देवी ( भगवान महावीर के आगमन सम्बन्धी) समाचार को सुनकर वह जो चाहती थी वही उसे प्राप्त हुआ था, अतः उसके हृदय में यह भाव उत्पन्न हुआ कि यह तो निश्चित ही है कि श्रमण भगवान महावीर इस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में ग्रामानुग्राम विहार करते हुए पधारे हैं। उनका आगमन निश्चय ही शुभ फलदायक है, ऐसे श्रमण भगवन्तों का नाम स्मरण ही जबकि महाफलदायक होता है तो उनके दर्शनार्थ जाना, उन्हें नमस्कार करना, उनकी सेवा करना तो शुभ फलदायक होगा ही, अतः मैं उनके दर्शनार्थं जाती हूं, उनको बन्दन करती हूँ, उनकी उपासना करती हूं और अपने हृदय में जो पुत्र सम्बन्धी प्रश्न हैं वह उनसे पूछती हूँ | यह सोचकर उसने अपने पारिवारिक दासों को बुलवाया और उनसे कहादेवानुप्रियो ! धार्मिक कार्यों के लिये निश्चित मेरा अश्व - सारथी आदि से युक्त रथ शीघ्र लाओ । दास लोग रथ को तैयार करके " रथ तैयार है" महारानी से यह निवेदन करते हैं ।
टीका - इस सूत्र में काली देवी के विषय में वर्णन किया गया है, जैसे कि जब काली देवी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी के आगमन का समाचार प्राप्त किया, तब उसके हृदय में निम्न लिखित विचार उत्पन्न हुए। जैसे कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से ग्रामानुग्राम विचरते हुए इस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नामक चैत्य में (उद्यान में) विराजमान हो गए हैं। जो व्यक्ति महापुरुषों के धर्मोपदेश को धारण करता है, उसे महाफल प्राप्त होता है, इसलिए मैं भी भगवान महावीर की सेवा कर के यह प्रत्यक्ष प्रश्न पूछेंगी। तब वह स्वकीय दासों को ग्रामन्त्रित कर कहने लगी- "हे देवानुप्रियो ! मेरे जाने के लिए धार्मिक रथ को अश्वों से संयुक्त कर, मुझे शीघ्र ही सूचित करो। तब दासों ने उसी प्रकार करके काली देवी को सूचित कर दिया ।
कुछ प्रतियों में वृत्तिकार ने "अज्झत्थिए” के पश्चात् निम्न लिखित पाठ अधिक दिया हैचितिय पथिय मणोगए संप्पत्ते' अर्थात् चिन्तित स्मरण-रूप, प्रार्थितः आशंसा रूप:, मनोगतः