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बर्ग-प्रथम ]
(२४)
[ निरयावलिका सूत्रम्
उत्थानिका-तत्पश्चात् इस विषय में क्या हुआ ? यही सूत्रकार-बतलाते हैं
मूल-तए णं तोसे कालीए देवीए इमोसे कहाए लट्ठाए समाणी ए अयमेवारूवे अज्झथिए जावसमुप्पज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं पुन्वाणुपुन्विं इहमागए जाव विहरइ । तं महाफलं खलु तहारूवाणं जाव विउलस्स अठुस्स गहणयाए । तं गच्छामि समणं जाव पज्जुवासामि, इमंच णं एयारू वं वागरणं पुच्छिस्सामि त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कोटम्बिय-पुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तमेव उवठ्ठवेह । उवटुवित्ता जाव पच्चप्पिणंति ॥ १३॥
छाया-ततः खलु तस्याः देव्याः एतस्याः कथायाः लब्धार्थायाः सत्याः अयमेतद्रूपः आध्यात्मिकः यावत् समुदपद्यत - एवं खलु श्रमणो भगवान् महावीरः पूर्वानुपूाः इहागतः यावद् विहरति तन्महाफलं खल तया रूपाणां यावत् विपुलस्यार्थस्य ग्रहणतया तद् गच्छामि खलु श्रमणं यावत् पर्युपासे, इदं च खलु एतद्रूपं व्याकरणं प्रक्ष्यामि, इतिकृत्वा एवं संप्रेक्षते, संप्रेक्ष्य कौटुम्बिक-पुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एव नवादीत् -क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! धार्मिकं यान-प्रवरं युक्तमेवं उपस्थापयत । उपस्थाप्य यावत् प्रत्यर्पयन्ति । ॥१३॥
पदार्थान्वय:- तए णं, तत्पश्चात णं वाक्यालङ्कार के लिये प्रयुक्त है), तीसे कालीए देवीए-उस काली देवी के हृदय में, इमोसे - इस, कहाए-कथा के (वृत्तान्त के), लद्धद्वाए समाणीए-वह जो चाहती थी वह हो जाने पर, अयमेवारूवे-इस प्रकार का मानसिक भाव, जाव-यावत्, समुप्पज्जित्थाउत्पन्न हुआ, एवं खलु-यह निश्चित है कि, समणे श्रमण, भगवं-भगवान् महावीर, पुव्वाणु पुट्विं -ग्रामानुग्राम, इहमागए-यहां इस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में पधारे हैं, यावत्-विहरइ-यावत् विहार करते हुए, तं महाफलं- यह महान् फलदायक है, खलु - निश्चय ही, तहारूवाणं - तथारूप अर्थात् शुभ परिणाम देने वाले, जाव-यावत् अर्थात् श्रमण भगवन्तों का नाम-स्मरण ही, (अतः) विउलस्स-विपुल अर्थात् बहुत, अठुस्स-अर्थ अर्थात् प्रयोजन को, गहणयाए-को ग्रहण करने के लिये अर्थात् प्रयोजन - सिद्धि के लिये, तं-इसलिये, गच्छामि-मैं जाती हूं, समणं-श्रमण भगवान महावीर की, जाव--यावत्, पज्जुवासामि--सेवा करूं, इम च णं - और अपने हृदय में पूर्व उठे हुए, एयारूवं -- और उसी प्रकार के अन्य, वागरणं-अनेक प्रश्न पुच्छिस्सामि - मैं पूछगी, त्ति कट्ट- यह कह कर, एवं संपेहेइ-इस प्रकार विचार करती है, संहिता-विचार करके, कोम्बियपुरुसे-पारिवारिक निजी दासों को, सहावेइ-बुलवाती है,