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निरयाव लिका सूत्रम् ]
(२३)
[ वर्ग-प्रथम
- उपहतोमनः-संकल्यो युक्तायुक्तविवेचनं यस्याः सा उपहतमनः-संकल्पा। यावत्कारणात् "करयलपल्हत्थियमुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवय गनयणकमला” ओमंथियं-अधोमुखीकृतं वदनं च नयनकमले च यथा सा तथा। 'दीणविवन्नवयणा' दीनस्येव विवर्ण वदनं यस्याः सा तथा। 'झियाई' त्ति आर्तध्यानं ध्यायति, मणोमाणसिएणं दुक्खे वचनेनाप्रकाशितत्वात् तन्मनो-मानसिकं तेन अबहिर्वतिनाऽभिभूता।
____ इस वृत्ति का भाव यह है कि वह देवी मानसिक दुख से व्याकुल हुई प्रार्त-ध्यान में लीन हो गई।
उत्थानिका-तत्पश्चात् क्या हुआ ? अब सूत्रकार इसी विषय में कहते हैं
मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे समोसरिए, परिसा निग्गया ॥१२॥
छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसृत । परिषद् निर्गता।
पदार्थान्य:-तेणं कालेणं-उस अवसर्पिणी काल के चतुर्थ भाग में, तेणं समएणं - उस समय जिस समय श्रमण भगवान महावीर विद्यमान थे, समणे-श्रमण, भगवं-भगवान, महावीरे-महावीर, सनोसरिए-पधारे, परिसा-परिषद्, निग्गया-नगर से निकली।
मूलार्थ-उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी का समवसरण • हुआ, अर्थात् वे पधारे । तब नगर की परिषद् (जनता) भगवान महावीर के वचनामृन सुनने को आई।
__टोका-इस सूत्र में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समवसरण विषयक वर्णन किया गया है. उस समय संग्राम हो रहा था और काल कमार आदि १० भ्राता उस संग्राम में गए हए थे। तब उस समय काली देवी स्वकीय कुटुम्ब विषयक चिन्ता में काल कुमार के जय पराजय विषय की चिन्ता में मग्न हो रही थी। उसी समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी चम्पा नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्ण भद्र चैत्य में विराजमान हुए । नगर की परिषद् अर्थात् जनता भगवान महावीर के वचनामृत सुनने के लिए आई।