SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक ३ पेहाए तिरिच्छसंपाइमा वा तसा पाणा संथडा संनिचयमाणा पेहाए से एवं नच्चा नो सव्वं भंडगमायाए गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा, बहिया विहारभूमिं वा वियारभूमिं वा निक्खमिज वा पविसिज वा गामाणुगामं दूइज्जिज्जा॥२०॥ ___ छाया- स भिक्षुरथ पुनरेवं जानीयात्, तीव्रदेशिकां वर्षां वर्षन्तीं प्रेक्ष्य, तीव्रदेशिकां महिकां संनिपतन्तीं प्रेक्ष्य, महावातेन वा रजः समुद्भुतं प्रेक्ष्य, तिरश्चीनं संनिपतितो वा त्रसप्राणिनः संस्कृतान् [ संस्तृतान् ] संनिपतन्तः प्रेक्ष्य, स एवं ज्ञात्वा न सर्वं भंडकमादाय गृहपतिकुलं पिंडपातप्रतिज्ञया प्रविशेद् वा निष्क्रामेद् वा, बहिः विहारभूमिं वा विचारभूमि वा निष्क्रामेद वा प्रविशेद् वा ग्रामानुग्रामं गच्छेत्। . पदार्थ- से-वह। भिक्खू-साधु या साध्वी। अह-अथवा। पुण-फिर। एवं -इस प्रकार से। जाणिज्जा-जाने। तिव्वदेसियं-वृहद् द्वारोपेत बहुत विस्तृत क्षेत्र। वासं-वर्षा । वासेमाणं-बरसती हुई। पेहाएदेखकर। तिव्वदेसियं-बड़े देश में अन्धकार रूप। महियं-धुन्ध । संनिचयमाणं-पड़ती हुई। पेहाए-देखकर । वा-अथवा। महावायेण-महावायु से। रयं-रज-धूली। समुद्धयं-उड़ती हुई। पेहाए-देखकर। वा-अथवा। तिरिच्छसंपाइमा-तिर्यग्। तसा पाणा-त्रसप्राणियों के।संथडा-समुदाय को।संनिचयमाणा-उड़ते एवं गिरते हुए। पेहाए-देखकर।से-वह भिक्षु। एवं-इस प्रकार। नच्चा-जानकर। सव्वं-सब।भंडगमायाए-धर्मोपकरण को ले कर। गाहावइकुलं-गृहपतिकुल में। पिंडवायपडियाए-पिण्डपात प्रतिज्ञा से-आहार लेने की प्रतिज्ञा से। नो पविसिज वा-प्रवेश न करे। निक्खमिज वा-और न वहां से निकले। बहिया-बाहर। विहारभूमिं वाविहार भूमि में अथवा। वियारभूमिं वा-विचार भूमि में। निक्खमिज वा-न निकले या। पविसिज वा-न प्रवेश करे अर्थात् वह भंडोपकरण लेकर न जाए और न आए तथा। गामाणुगाम-एक ग्राम से दूसरे ग्राम को। दूइजिजा-नहीं जाए। - मूलार्थ-बृहद् देश में वर्षा बरसती हुई देखकर, तथा बृहद् देश में अन्धकार रूप धुंध पड़ती हुई देखकर, अथवा महावायु से रज उड़ती हुई देख कर या बहुत से त्रस प्राणियों को उड़ते व गिरते हुए देखकर तथा इस प्रकार जानकर साधु वा साध्वी सब धर्मोपकरण को साथ ले कर आहार की प्रतिज्ञा से गृहपति के कुल में न तो प्रवेश करे और न वहां से निकले। इसी प्रकार बाहर विहार भूमि या विचार भूमि में भी प्रवेश या निष्क्रमण न करे तथा एक गांव से दूसरे गांव को विहार भी न करे। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि यदि देश व्यापी वर्षा बरस रही हो, धुंध पड़ रही हो, आंधी के कारण धूल पड़ रही हो, पतंगे आदि त्रस जीव पर्याप्त संख्या में उड़ एवं गिर रहे हों, ऐसी अवस्था में सभी भण्डोपकरण लेकर साधु को आहार के लिए या शौच एवं स्वाध्याय के लिए अपने स्थान से बाहर नहीं जाना चाहिए। और ऐसे प्रसंग पर एक गांव से दूसरे गांव को विहार भी नहीं करना
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy