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पञ्चदश अध्ययन
४७९ केवली ब्रूयात्आदानमेतत् , क्रोधप्राप्तः क्रोधत्वं समावदेत् मृषावचनं, क्रोधं परिजानाति स निर्ग्रन्थः, न च क्रोधनः स्यात् इति द्वितीया भावना।
अथापरा तृतीया भावना-लोभं परिजानाति स निर्ग्रन्थः, न च लोभन: स्यात्, केवली ब्रूयात् आदानमेतत् , लोभप्राप्तः लोभी समावदेत् मृषावचनं, लोभं परिजानाति स निर्ग्रन्थः, न च लोभनः स्यात् इति तृतीया भावना।
अथापरा चतुर्थी भावना-भयं परिजानाति सः निर्ग्रन्थः, नो भयभीरुकः स्यात्, केवली ब्रूयात् आदानमेतत्, भयप्राप्तः भीरुः समावदेत् मृषावचनम्, भयं परिजानाति सः निर्ग्रन्थः, नो भयभीरुकः स्यात् चतुर्थी भावना।
: अथापरा-पंचमी भावना-हासं परिजानाति स निर्ग्रन्थः, न च हसनकः स्यात्, केवली ब्रूयात् आदानमेतत् , हासं प्राप्तः हासी समावदेत् मृषावचनं, हासं परिजानाति स निर्ग्रन्थः, नो हसनकः स्यादिति पंचमी भावना।
पदार्थ- तस्स-उस द्वितीय महाव्रत की। इमा-ये आगे कही जाने वाली। पंच भावणाओ-पांच भावनाएं। भवन्ति-होती हैं। तत्थिमा-उन पांच भावनाओं में से यह। पढमा भावणा-पहली भावना है। अणुवीइभासी-जो विचार कर भाषण करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। नो अणणुवीइभासी-जो बिना विचारे भाषण करता है। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं कि यह कर्म बन्धन का हेतु है।अणणुवीइभासीबिना विचार किए बोलने वाला। से-वह। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ-साधु। मोसं-मृषावाद। वयणाए-वचन को। समावइज्ज-प्राप्त होता है, अतः। अणुवीइभासी-जो विचार पूर्वक बोलता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। नो अणणुवीइभासित्ति-न कि जो बिना विचारे बोलता है। पढमा भावणा-यह प्रथम भावना है।
___ अहावरा-अब अन्य। दुच्चा भावणा-दूसरी भावना को कहते हैं। कोहं-क्रोध को। परियाणइ-ज्ञ प्रज्ञा से-इस के कटु परिणाम को जान कर प्रत्याख्यान प्रज्ञा से उसका जो त्याग करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ, है। नो कोहणे सिया-साधु क्रोधी-क्रोधशील न हो। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं यह कर्म बन्ध का कारण है। कोहपत्ते-क्रोध को प्राप्त हुआ। कोहत्तं-साधु क्रोध भाव को प्राप्त कर। मोसं वयणाए-मृषा वचन। समावइजा-बोलता है अतः साधु क्रोध न करे। कोहं परियाणइ-जो क्रोध के कटुफल को जान कर उसे छोड़ता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। य-पुनः। न कोहणे सियत्ति-साधु क्रोधी-क्रोध करने वाला न हो। दुच्चा भावणा-यह दूसरी भावना है।
___ अहावरा तच्चा भावणा-अब तीसरी भावना को कहते हैं। लोभं परियाणइ-जो लोभ के कटुफल को जानकर लोभ का परित्याग करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ है। य-और। नो लोभणए सिया-साधु लोभ शील न होवे। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं। लोभपत्ते-लोभ को प्राप्त हुआ। लोभी-लोभी-लोभ करने वाला। मोसं वयणाए समावइज्जा-मृषा वचन बोलता है अतः। लोभं परियाणइ-जो साधु लोभ के कटुफल को जान कर लोभ का परित्याग करता है। से निग्गंथे-वह निर्ग्रन्थ। नो य लोभणए सियत्ति-साधु लोभ शील-लोभी न हो इस प्रकार यह। तच्चा भावणा-तीसरी भावना है।