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पञ्चदश अध्ययन
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पशु, पक्षी एवं क्षुद्र जन्तुओं द्वारा होने वाले किसी भी परीषह का, उपसर्ग का प्रतिकार नहीं करूंगा, आने वाले समस्त कष्टों को समभाव पूर्वक सहन करूंगा, सब प्राणियों के प्रति क्षमा एवं मैत्री भाव रखूगा। अपने को कष्ट देने वाले किसी भी प्राणी के अहित का संकल्प नहीं करूंगा। वस्तुतः यह भावना उनकी उत्कट साधना एवं महान् शक्ति की परिचायक है। इसी विशिष्ट शक्ति के कारण आप वर्द्धमान एवं श्रमणत्व से आगे बढ़कर महावीर बने। भगवान की महावीरता प्राणियों को दण्डे से दबाने में नहीं, प्रत्युत महान् कष्टों को समभाव पूर्वक सहने, दुखों की संतप्त दोपहरी में भी शान्त एवं अटल भाव से आत्म चिन्तन में संलग्न रहने, आततायियों को भी मित्र समझ कर उन्हें क्षमा करने तथा राग-द्वेष एवं कषाय रूप आध्यात्मिक शत्रुओं का नाश करने में थी। - इस प्रकार अनेक उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करते हुए भगवान विहार करते हैं, उनकी विहार चर्या का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- तओणं स० भ० महावीरे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता वोसट्ठचत्तदेहे दिवसे मुहुत्तसेसे कुम्मारगामं समणुपत्ते।
- छाया- ततः श्रमणो भगवान महावीरः, इमम् एतद्पम् अभिग्रहम् अभिगृह्य व्युत्सृष्टत्यक्तदेहः दिवसे मुहूर्तशेषे कुमारग्रामं समनुप्राप्तः।
पदार्थ-णं-वाक्यालंकारार्थक है। तओ-तत् पश्चात्। समणे-श्रमण।भगवं-भगवान। महावीरेमहावीर।इम-यह। एयारूवं-एतादृग्रूप।अभिग्गह-अभिग्रह-प्रतिज्ञा विशेष को।अभिगिण्हित्ता-ग्रहण करके। वोसट्ठचत्तदेहे-जिसने शरीर के ममत्व और देह का संस्कार करने का भी त्याग कर दिया है। मुहुत्तसेसे दिवसे-एक मुहूर्त दिन के रहने पर।कुम्मारगाम-कुमार नामक ग्राम को।समणुपत्ते-प्राप्त हुए-पहुंचे।
मूलार्थ-शरीर पर से ममत्व त्याग के अभिग्रह से युक्त श्रमण भगवान महावीर ने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की, उसी दिन वे शाम को एक मुहूर्त (४८ मिनट) दिन रहते कुमार ग्राम पहुंचे। ... हिन्दी विवेचन- इसमें यह बताया गया है कि भगवान ने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की उसी दिन पहला विहार कुमार ग्राम की ओर किया और सूर्यास्त से एक मुहूर्त (४८ मिनट) पहले कुमार ग्राम पहुंच गए।
विहार के समय भगवान की क्या वृत्ति थी, इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- तओ णं स० भ० म० वोसट्ठचत्तदेहे अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं एवं संजमेणं पग्गहेणं संवरेणं तवेणं बंभचेरवासेणं खंतीए मुत्तीए समिईए गुत्तीए तुट्ठीए ठाणेणं कमेणं सुचरियफलनिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
छाया- ततः श्रमणो भगवान् महावीरः व्युत्सृष्टत्यक्तदेहः अनुत्तरेण आलयेन अनुत्तरेण विहारेण एवं संयमेन प्रग्रहेण संवरेण तपसा ब्रह्मचर्यवासेन क्षान्त्या मुक्त्या समित्या गुप्तया