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________________ ४६० श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध गया है। ___ भगवान ने दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् जो अभिग्रह ग्रहण किया, उसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्- तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइए समाणे मित्तनाइसयणसंबंधिवग्गं पडिविसज्जेइ, २ त्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइबारस वासाइं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा समुप्पजति तंजहादिव्वा वा माणुस्सा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पन्ने समाणे सम्म सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि। छाया- ततः श्रमणो भगवान् महावीरः प्रव्रजितः सन् मित्रज्ञातिस्वजनसम्बन्धिवर्ग प्रतिविसर्जयति प्रतिविसर्म्य इमं एतद्पंअभिग्रहं अभिगृहाति, द्वादश वर्षाणि व्युत्सृष्टकायः त्यक्तदेहः ये केचिद् उपसर्गाः समुत्पद्यन्ते, तद्यथा-दिव्याः वा मानुष्या वा तैरिश्चिका वा तान् सर्वान् उपसर्गान् समुत्पन्नान् सतः सम्यक् सहिष्ये क्षमिष्ये अधिसहिष्ये। पदार्थ-णं-वाक्यालंकार में है। तओ-तदनन्तर।समणे-श्रमण।भगवं-भगवान महावीरे-महावीर। पव्वइए समाणे-प्रव्रजित-दीक्षित होने पर। मित्तनाइ-मित्र ज्ञाति और।सयणसंबंधिवग्गं-स्वजन सम्बन्धि वर्ग को। पडिविसज्जेइ-विसर्जित करके। इमं-यह। एयारूवं-एतादृश इस प्रकार के।अभिग्गह-अभिग्रह-प्रतिज्ञा विशेष को। अभिगिण्हइ-ग्रहण करते हैं। बारस वासाइं-बारह वर्ष पर्यन्त। वोसट्ठकाए-काया शरीर का व्युत्सर्ग तथा।चियत्तदेहे-शरीर गत ममत्व को छोड़ते हुए।जे केइ-जो कोई भी।उवसग्गा-उपसर्ग। समुप्पजंतिउत्पन्न होगा। तंजहा-जैसे कि। दिव्वा वा-देवसम्बन्धि। माणुस्सा वा-अथवा मनुष्य सम्बन्धि। तेरिच्छिया वा-अथवा तिर्यंच सम्बन्धिा ते सव्वे-उन सभी। उवसग्गे-उपसर्गों के। समुप्पन्ने समाणे-उत्पन्न होने पर उन सब को। सम्म-सम्यक् प्रकार से। सहिस्सामि-सहन करूंगा।खमिस्सामि-क्षमा करूंगा।अहियासइस्सामिखेद रहित हो कर सहन करूंगा। मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होने के पश्चात् अपने मित्र ज्ञाति और स्वजन सम्बन्धि वर्ग को विसर्जित किया और उन सब के चले जाने के बाद भगवान ने इस प्रकार का अभिग्रह धारण किया कि मैं आज से लेकर बारह वर्ष तक अपने शरीर पर ममत्व नहीं रखूगा और देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धि जो भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे, उन सभी उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करूंगा, सदा क्षमा भाव रखूगा, और स्थिरता पूर्वक उन कष्टों पर विजय प्राप्त करूंगा अर्थात् उनके सहन करने में किसी प्रकार से खिन एवं अप्रसन्न नहीं होऊंगा। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में भगवान महावीर की महान् साधना एवं सहिष्णुता का उल्लेख किया गया है। भगवान ने दीक्षा ग्रहण करते ही अपने शरीर पर से सर्वथा आसक्ति हटा दी। उन्होंने यह प्रतिज्ञा ग्रहण की कि मैं १२ वर्ष तक अर्थात् सर्वज्ञता प्राप्त नहीं होने तक देव-दानव, मानव और तिर्यञ्च
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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