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________________ पञ्चदश अध्ययन हो रहा है। वराभरणधारी-उन्होंने श्रेष्ठ आभूषणों को धारण कर रखा है। खोमियवत्थनियत्थो-जो क्षौमिककपास से उत्पन्न हुए वस्त्र को पहने हुए हैं य-और। जस्स-जिसका। मुल्लं-मूल्य। सयसहस्सं-एक लाख है। छट्टेणं भत्तेणं-षष्ट भक्त के साथ तथा।सुंदरेण-सुन्दर।अज्झवसाणेण-अध्यवसाय और।लेसाहिलेश्याओं से युक्त।विसुझंतो-विशुद्ध ऐसे। जिणो-जिनेन्द्र भगवान।उत्तमंसीयं-उत्तम शिविका में।आरुहइबैठते हैं-शिविका गत सिंहासन पर बैठते हैं। सीहासणे निविट्ठो-जब भगवान शिविका में रखे हुए सिंहासन पर विराजमान हो गए तब। यपुनः। सक्कीसाणा-शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र। दोहिं पासेहि-दोनों और। चामराहि-चामरों को। वीयंति-ढुलाते हैं। मणिरयणविचित्तदंडाहि-चामरों के दण्ड मणिरत्नादि से चित्रित हैं। साहटुरोमकूवेहि-जिनके रोम कूप हर्ष वश विकसित हो रहे हैं ऐसे।माणुसेहि-मनुष्यों ने। पुट्विंप्रथम। उक्खित्ता-उस शिविका को उठाया और। पच्छा-पीछे। देवा-देव। सुर-वैमानिक देव। असुर-असुर कुमार देव। गरुल-गरुड़ कुमार देव। नागिंदा-नाग कुमारों के इन्द्र। वहंति-उठाते हैं। चारों दिशाओं से जिस प्रकार देवों ने शिविका को उठाया है उसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैंपुराओ-पूर्व दिशा में। सुरा-वैमानिक देव। वहंति-उठाते हैं। पुण-फिर। असुरा दाहिणंमि पासंमि-दक्षिण दिशा की और से असुर कुमार देव उठाते हैं। अवरे-पश्चिम दिशा में। गरुला-सुवर्ण कुमार देव। वहंति-वहन करते हैं। पुण-फिर। नागा उत्तरे पासे-उत्तर दिशा की ओर नाग कुमार देव वहन करते हैं। . व-जैसे।कुसुमियं-विकसित हुआ।वणसंडं-वनषंड शोभता है। वा-या।जहा-जैसे। सरयकालेशरत् काल में। कुसुमभरेणं-विकसित पुष्प समूह से युक्त। पउमसरो-पद्म सरोवर। सोहइ-सुशोभित होता है। इय-इसी प्रकार। सुरगणेहि-देवों के समूह से। गगणयलं-आकाश मंडल सुशोभित हो रहा है। व-अथवा। कुसुमभरेणं-पुष्पों के समूह से। सिद्धत्थवणं-सरसों का वन।जहा-जैसे। कणियारवणंकचनार अथवा कनेर का वन।वा-अथवा। चंपयवणं-चम्पक वन।सोहइ-सुशोभित होता है। इय-इसी प्रकार। गगणयलं-आकाश मंडल। सुरगणेहि-देवों के समूह से शोभा पा रहा है। वरपडह-प्रधान पटह। भेरी-भेरी। ज्झल्लरी-झांज एक प्रकार का वाद्यन्तर। संख-शंख। सयसहस्सेहिं-लाखों। तूरेहि-वाद्यों-वाजन्तरों से। गगणयले-आकाश मंडल तथा। धरणियले-अवनी तल। तूरनिनाओ-वाद्यंत्रों के शब्दों से। परमरम्मो-परमरमणीक हो रहा है। तत्थ-वहां पर।ततविततं-तत-वीणा आदि, वितत-मृदंगादि वाद्य।घण-ताल आदि। झुसिरं-वंश ओर शंखादि। आउजं-वाद्यन्तर। चउव्विहं-चार प्रकार के अथवा। बहुविहीयं-बहुत प्रकार के वाद्यन्तर को। देवा-देव। वायंति-बजाते हैं और।बहूहि-वे विविध प्रकार के आनट्टगसएहि-नाटक करने वालों के साथ मूलार्थ-जरा मरण से विप्रमुक्त जिनवर के लिए शिविका लाई गई, जो कि जल और स्थल पर पैदा होने वाले श्रेष्ठ फूलों और वैक्रिय लब्धि से निर्मित पुष्प मालाओं से अलंकृत थी। उस शिविका के मध्य में प्रधान रत्नों से अलंकृत यथा योग्य पाद पीठिकादि से युक्त,
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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