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________________ ४५४ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध जिनेन्द्र देव के लिए सिंहासन का निर्माण किया गया था। जिनेन्द्र भगवान महावीर एक लाख रूपए की कीमत वाले क्षौम युगल (कार्पास) के वस्त्र को धारण किए हुए थे और आभूषणों, मालाओं तथा मुकुट से अलंकृत थे। . उस समय प्रशस्त अध्यवसाय एवं लेश्याओं से युक्त भगवान षष्ट भक्त बेले की तपश्चर्या ग्रहण करके उस शिविका-पालकी में बैठे। जब श्रमण भगवान महावीर शिविका पर आरूढ़ हए तो शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र शिविका के दोनों तरफ खड़े होकर मणियों से जटित डंडे वाली चामरों को भगवान के ऊपर झूलाने लगे। सब से पहले मनुष्यों ने हर्ष एवं उल्लास के साथ भगवान की शिविका उठाई। उसके पश्चात् देव, सुर, असुर, गरुड़ और नागेन्द्र आदि देवों ने उसे उठाया। शिविका को पूर्व दिशा से सुर-वैमानिक देव उठाते हैं, दक्षिण से असुर कुमार, पश्चिम से गरुड़ कुमार और उत्तर दिशा से नाग कुमार उठाते हैं। उस समय देवों के आगमन से आकाश मंडल वैसा ही सुशोभित हो रहा था जैसे खिले हुए पुष्पों से युक्त उद्यान या शरद् ऋतु में कमलों से भरा हुआ पद्म सरोवर शोभित होता है। जिस प्रकार से सरसों, कचनार तथा चम्पक वन फूलों से सुहावना प्रतीत होता है, उसी तरह उस समय आकाश मंडल देवों से सुशोभित हो रहा था। उस समय पटह, भेरी, झांझ, शंख आदि श्रेष्ठ वादिंत्रों से गुंजायमान आकाश एवं भूभाग बड़ा ही मनोहर एवं रमणीय प्रतीत ह उस समय देव तत, वितत, घन और झुषिर इत्यादि अनेक तरह के बाजे बजा रहे थे तथा विभिन्न प्रकार के नृत्य कर रहे थे एवं नाटक दिखा र हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत गाथाओं में यह अभिव्यक्त किया गया है कि भगवान देव निर्मित सहस्र वाहिका शिविका में बैठे और देवों एवं मनुष्यों ने उस शिविका को उठायां। शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र उस शिविका के दोनों और खड़े थे और भगवान के ऊपर रत्न एवं मणियों से विभूषित डंडों से युक्त चमर झुला रहे थे। उस समय देव एवं मनुष्य सभी के चेहरों पर उल्लास एवं हर्ष परिलक्षित हो रहा था और आज सब अपने आपको धन्य मान रहे थे। जिस समय भगवान शिविका में बैठकर जा रहे थे, उस समय, देव, असुर, किन्नर, गन्धर्व आदि बड़े हर्ष के साथ बाजे बजा रहे थे और विभिन्न प्रकार के नृत्य कर रहे थे। सारा वातावरण हर्ष एवं उल्लास से भरा हुआ था। ___ इतने हर्ष एवं आनन्द के वातावरण में भी भगवान प्रशस्त अध्यवसायों के साथ शान्त बैठे हुए थे। उस समय भगवान ने षष्ठ भक्त-बेले का तप स्वीकार कर रखा था। अब भगवान की दीक्षा से संबंधित विषय का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं- . मूलम्- तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्सणं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणंसुव्वएणं दिवसेणं
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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