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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध हुए तिर्यक् लोक में स्थित असंख्यात द्वीप समुद्रों को उल्लंघन करते हुए जहां पर जम्बूद्वीप नामक द्वीप है वहां पर आते हैं। जम्बूद्वीप में भी उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश में आकर उसके ईशान कोण में जो स्थान है वहां पर बड़ी शीघ्रता से उतरते हैं।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान के दीक्षामहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए चारों जाति के देव क्षत्रिय कुंड ग्राम में एकत्रित होते हैं। यह स्पष्ट है कि देव अपने मूल रूप में मृत्युलोक में नहीं आते। वे उत्तर वैक्रिय करके मनुष्यलोक में आते हैं और उत्तर वैक्रिय में वे १६ प्रकार के विशिष्ट रत्नों के सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करते हैं।
इस विषय को आगे बढ़ाते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- तओ णं सक्के देविंदे देवराया सणियं २ जाणविमाणं पट्ठवेति सणियं २ जाण विमाणं पट्ठवेत्ता सणियं २ जाणविमाणाओ पच्चोरुहति सणियं २ एगंतमवक्कमइ एगंतमवक्कमित्ता महया वेउव्विएणं समुग्धाएणं समोहणइ २ एगं महं नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं, देवच्छंदयं विउव्वइ, तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभाए एगं महं सपायपीढं नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं सीहासणं विउव्वइ २, त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्तासमणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छइ सणियं २ पुरत्थाभिमुहं सीहासणे निसीयावेइ सणियं २ निसीयावित्ता सयपागसहस्सपागेहिं तिल्लेहिं अब्भंगेइ गंधकासाइएहिं- उल्लोलेइ २ सुद्धोदएण मज्जावेइ २ जस्स णं मुल्लं सयसहस्सेणं तिपडोलतित्तिएणं साहिएणं सीतेण गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिंपइ २ ईसिं निस्सासवायवोझं वरनयरपट्टणुग्गयं कुसलनरपसंसियं अस्सलालापेलवं छेयारियकणगखइयंतकम्मं हंसलक्खणं पट्टजुयलं नियंसावेइ २ हारं अद्धहारं उरत्थं नेवत्थं एगावलिं पालंबसुत्तं पट्टमउडरयणमालाओ आविंधावेइ आविंधावित्ता गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमेणं मल्लेणं कप्परुक्खमिव समलंकरेइ २ त्ता दुच्चंपि महया वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणइ २ एगं महं चंदप्पहं सिवियं सहस्सवाहणियं विउव्वति, तंजहा-ईहा
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इस प्रकरण को समझने के लिए जिज्ञास राजप्रश्नीय सूत्र का अवलोकन करें।