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________________ ४३९ पञ्चदश अध्ययन माता-पिता चौथे स्वर्ग में गए और आचारांग में १२ वां स्वर्ग बताया गया है। यदि निर्युक्तिकार ने चौथे स्वर्ग का उल्लेख चतुर्थ जाति के (वैमानिक) देवों के रूप में किया है, तब तो आचारांग से विपरीत नहीं कहा जा सकता। क्योंकि १२ वां स्वर्ग वैमानिक देवों में ही समाविष्ट हो जाता है और यदि उनका अभिप्राय चौथे देवलोक से ही है तो वह मान्य नहीं हो सकता। क्योंकि आगम में स्पष्ट रूप से १२ वें स्वर्ग का उल्लेख किया गया है। अतः आगम का कथन ही प्रामाणिक माना जा सकता है। अब भगवान के दीक्षा महोत्सव का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भ० नाए नायपुत्ते नायकुलनिव्वत्ते विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाई विदेहंसित्ति कंट्टु अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहिं देवलोगमणुपत्तेहिं, समत्तपइन्ने चिच्चा हिरण्णं चिच्चा सुवन्नं चिच्चा बलं चिच्चा वाहणं चिच्चा धणकणगस्यणसंतसारसावइज्जं विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता विस्साणित्ता दायारेसु दाणं दाइत्ता परिभाइत्ता संवच्छरं दलइत्ता जे से हेमताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं, हत्थुत्तरा• जोग• अभिनिक्ख़मणाभिप्पाए यावि होत्था । छाया - तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः ज्ञातः ज्ञातपुत्रः ज्ञातकुलनिर्वृत्तः विदेहः विदेहदत्तः विदेहार्चः विदेहसुकुमालः त्रिंशद् वर्षाणि विदेहे इति कृत्वा अगारमध्ये उषित्वा अम्बापित्रौः कालगतयोः देवलोकमनुप्राप्तयोः समाप्तप्रतिज्ञः त्यक्त्वा हिरण्यं त्यक्त्वा सुवर्णं, त्यक्त्वा बलं, त्यक्त्वा वाहनं, त्यक्त्वा धनकनकरत्नसत्सारस्वापतेयं विच्छंर्द्य विगोप्य विश्राण्य दातृषु दानं दत्वा परिभाज्य सम्वत्सरं दत्त्वा यः सः हेमन्तानां प्रथमो मासः प्रथमः पक्षः मार्गशीर्षबहुलः तस्य मार्गशीर्षबहुलस्य दशमीपक्षेण हस्तोत्तरानक्षत्रेण योगमुपागतेन अभिनिष्क्रमणाभिप्रायश्चापि अभवत् । पदार्थ - तेणं कालेणं तेणं समएणं उस काल और उस समय में । समणे भगवं महावीरेश्रमण भगवान महावीर। नाए - ज्ञात - प्रसिद्ध । नायपुत्ते- ज्ञात पुत्र । नायकुलनिव्वत्ते- -ज्ञात कुल में चन्द्रमा के समान आल्हाद उत्पन्न करने वाले । विदेहे वज्र नाराच संहनन तथा समचतुरस्त्र संस्थान के अति सुन्दर होने से विदेह-अर्थात् विशिष्ट देह-शरीर वाले। विदेहदिन्ने त्रिशला देवी के पुत्र होने से विदेह दिन्न अर्थात् भगवान को विदेह दिन्न या विदेह दत्त कहते हैं। विदेहजच्चे-विदेहार्च- अर्थात् त्रिशला माता के शरीर से उत्पन्न होने या कामदेव पर विजय प्राप्त करने से भगवान को विदेहार्च कहा गया है। विदेहसूमाले विदेहसुकुमाल अर्थात् गृहस्थावास १ अष्टाविंशति वर्षातिक्रमे भगवतो मातापितरौ आवश्यकाभिप्रायेण तूर्यं स्वर्गं आचारांगाभिप्रायेण तु अनशनेन • कल्पसूत्र सुबोधिका वृत्ति ।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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