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________________ ॥ तृतीय चूला - भावना अध्ययन ॥ पञ्चदश अध्ययन ( भगवान महावीर की साधना ) आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के नवम अध्ययन में भगवान महावीर की साधना का महत्त्वपूर्ण वर्णन मिलता है। उसमें भगवान महावीर की उत्कट साधना का सजीव रूप देखने को मिलता है। उसमें साधना के वर्णन के साथ भगवान के जीवन का परिचय नहीं दिया है। अत: उसकी पूर्ति प्रस्तुत अध्ययन में की गई है। इस में भगवान महावीर के जन्म एवं जीवन-चर्या का उल्लेख करके उनके द्वारा स्वीकृत ५ महाव्रतों की २५ भावनाओं का वर्णन किया गया है। इसमें भगवान को कुमार ग्राम से लेकर भिका तक, क्या २ कष्ट आए इसका वर्णन नहीं किया गया है। क्योंकि यह विवरण उपधान अध्ययन में किया जा चुका है, अत: उसे यहां फिर से नहीं दोहराया गया। इससे स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत अध्ययन तीसरी चूला के रूप में सन्निहित होने के कारण उपधान अध्ययन की संपूर्ति रूप कहा जा सकता प्रस्तुत अध्ययन का महत्त्व भगवान के दिव्य, भव्य एवं कल्याण कारी जीवन की अलौकिकता को दिखाने में है, और उस आदर्श जीवन की साधना से प्रेरणा लेकर साधक के जीवन में साधना का उज्ज्वल प्रकाश फैलाने में है। अतः भगवान महावीर के जीवन का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं 1 मूलम् - तेणं कालेणं. तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था, तंजहा - हत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्धं वक्कंते, हत्थुत्तराहिं गब्भाओ साहरिए, हत्थुत्तराहिं जाए, हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, हत्थुत्तराहिं कसिणे पडिपुण्णे अव्वाघाए निरावरणे अनंते अणुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, साइणा भगवं परिनिव्वुए ॥ १७५ ॥ छाया - तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीर : पंचहस्तोत्तरश्चापि अभूत् । तद्यथा हस्तोत्तरासु च्युतः च्युत्वा गर्भे व्युत्क्रान्तः ॥ १ । हस्तोत्तरासु गर्भाद् गर्भे संहृतः ॥ २ ॥ हस्तोत्तरासु जातः । ३ । हस्तोत्तरासु मुण्डो भूत्वा अगारादनगारतां प्रव्रजितः ।४ । हस्तोत्तरासु कृत्स्नं प्रतिपूर्णं अव्याघातं निरावरणमनन्तमनुत्तरं केवलवरज्ञानदर्शनं समुत्पन्नम् ॥५ । स्वातौ भगवान् परिनिवृतः। पदार्थ - तेणं कालेणं-उस काल और । तेणं समएणं - उस समय । समणे - श्रमण | भगवं- भगवान् । महावीरे-महावीर स्वामी के । पंचहत्थुत्तरा होत्था-पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए | तंजहा - जैसे । हत्थुत्तराहिं चुए- उत्तराफाल्गुनी में देवलोक से च्युत हुए। चइत्ता- च्युत होकर। गब्धं वक्कंते-गर्भ में उत्पन्न हुए। हत्थुत्तराहिं- उत्तरा फाल्गुनी में। गब्भाओ - गर्भ से । गब्भं गर्भ में अर्थात् एक गर्भ से दूसरे गर्भ में | साहरिएसंहरण किए गए। हत्थुत्तराहिं-उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जाए- उत्पन्न हुए । हत्थुत्तराहिंई-उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में ।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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