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________________ ' एकादश अध्ययन ३९७ जैसे कि।अट्टाणि वा-अटारी पर होने वाले शब्द।अट्टालयाणि वा-अटारी की फिरनी में होने वाले शब्द। चरियाणि वा-प्राकार और नगर के मध्य में होने वाले आठ हाथ प्रमाण राजमार्ग के शब्द। दाराणि वा-द्वार में होने वाले शब्द।गोपुराणि वा-नगर के बड़े द्वार पर होने वाले शब्द अथवा।अन्न-अन्य। तह-इसी प्रकार के। सद्दाइं-शब्दों को कान से सुनने की प्रतिज्ञा से । नो अभि०-जाने का मन में संकल्प न करे। से भि०-वह साधु या साध्वी। अहावे-कभी कई। सद्दाणि-शब्दों को। सुणेइ-सुनता है। तं-जैसे कि।तियाणि वा-जहां पर नगर में तीन मार्ग मिलते हों वहां पर होने वाले शब्द। चउक्काणि वा-चौराहे पर होने वाले शब्द। चच्चराणि वा-जहां पर बहुत से मार्ग संमिलित होते हों वहां पर होने वाले शब्द तथा। चउम्मुहाणि वा-चतुर्मुख मार्ग में होने वाले शब्द। अन्न-तथा अन्य। तह-इसी प्रकार के। सहाई-शब्दों को कान से सुनने के लिए। नो अभि०-जाने का मन में विचार न करे। से भि-वह साधु या साध्वी। अहावे-कभी कई तरह के। सहाणि-शब्दों को। सुणेइ-सुनता है। तंजहा-जैसे कि। महिसकरणट्ठाणाणि वा-भैंस शाला में होने वाले शब्द। वसभकरणट्ठाणाणि वावृषभ शाला में होने वाले शब्द।अस्सक-घुड़शाला में होने वाले शब्द। हत्थिक-हस्तीशाला में होने वाले शब्द। जाव-यावत्।कविंजलकरणट्ठा-जहां पर कपिंजल पक्षी के ठहरने का स्थान है वहां पर होने वाले शब्द तथा। अन्न-अन्य। तह-तथाप्रकार के। सद्दाइं-शब्दों को कान से सुनने की प्रतिज्ञा से। नो• अभि०-जाने का मन में विचार न करे। . सेभि०-वह साधुया साध्वी। अहावे-कई तरह के।सदाणि-शब्दों को।सुणेइ-सुनता है। तंजहा०जैसे कि। महिसजुद्धाणि वा-भैंसों के युद्ध क्षेत्र में होने वाले शब्द। जाव-यावत्। कविंजलजु-कपिंजल पक्षियों के युद्ध क्षेत्र में होने वाले शब्द।अन्न-तथा अन्य। तह-तथाप्रकार के। सद्दाइं-शब्दों को सुनने की प्रतिज्ञा से। नो अभि-सन्मुख होकर जाने के लिए मन में विचार न करे। से भि-वह साधु या साध्वी। अहावे-कई तरह के। सद्दाणि-शब्दों को। सुणेइ-सुनता है। तंजैसे कि। जूहियठाणाणि वा-वर वधु के मिलन स्थल पर होने वाले शब्द अर्थात् विवाह वेदी के समय पर होने वाले शब्द। हयजू०-घोड़ों के यूथ जहां पर रहते हों उन स्थानों में होने वाले शब्द। गयजू-हाथी के यूथ के स्थान में होने वाले शब्द तथा। अन्न-अन्य। तह-इसी प्रकार के। सद्दाइं-शब्दों को सुनने की प्रतिज्ञा से। नो अभि०जाने का मन में विचार न करे। . . मूलार्थ-संयमशील साधु या साध्वी कभी कई तरह के शब्दों को सुनते हैं। परन्तु उन्हें खेत के क्यारों में एवं खाई यावत् सरोवर, समुद्र और सरोवर की पंक्तियां इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प नहीं करना चाहिए। और साधु जल-बहुल प्रदेश, वनस्पति समूह, वृक्षों के सघन प्रदेश, वन, पर्वत, और विषम पर्वत इत्यादि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का भी संकल्प न करे। इसी भांति ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, आश्रम, पत्तन और सन्निवेश आदि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का भी मन में संकल्प न करे। तथा आराम, उद्यान, वन, वन-खण्ड, देवकुल, सभा और प्रपा (जल पिलाने का स्थान) आदि स्थानों में होने वाले शब्दों
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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