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________________ सप्तम अध्ययन, उद्देशक १ ३५९ ऐसे उपाश्रय में भी बुद्धिमान साधु ठहरने की आज्ञा न मांगे। जिस उपाश्रय में गृहपति यावत् उनकी दासियां परस्पर आक्रोश करती हों, या तेलादि की मालिश करती हों, स्नानादि करती और नग्न होकर बैठती हों इस प्रकार के उपाश्रय की भी साधु याचना न करे। और जो उपाश्रय चित्रों से आकीर्ण हो रहा हो उसकी भी आज्ञा नहीं लेनी चाहिए। यह साधु और साध्वी का समग्र आचार है। इस प्रकार मैं कहता हूँ। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में साधु को कैसे मकान में ठहरना चाहिए इसका उल्लेख करते हुए शय्या अध्ययन में वर्णित बातों को दोहराया है। जैसे-जो उपाश्रय अस्थिर दीवार एवं स्तम्भ पर बना हुआ हो, विषम स्थान पर हो, स्त्रियों से आवृत्त हो, जिसके आने-जाने के मार्ग में स्त्रियां बैठी हों, परस्पर तेल की मालिश कर रही हों, या अस्त-व्यस्त ढंग से बैठी हों, तो ऐसे स्थान की साधु को याचना नहीं करनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि साधु को ऐसे स्थान में ठहरने का संकल्प नहीं करना चाहिए, जिस में जीवों की हिंसा एवं संयम की विराधना होती हो, मन में विकार उत्पन्न होता हो और स्वाध्याय एवं ध्यान में विघ्न पड़ता हो। यह साधु का उत्सर्ग मार्ग है। परन्तु, यदि किसी गांव में संयम साधना के अनुकूल मकान नहीं मिल रहा है, तो साधु एक-दो रात के लिए परिवार वाले मकान आदि में भी ठहर सकता है। यह अपवाद मार्ग है। ऐसी स्थिति में साधु को एक-दो रात्रि से अधिक ऐसे मकान में ठहरना नहीं कल्पता है। ... प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'कुलियंसि एवं थूणंसि' का अर्थ कोषरे में कुड्य दीवार एवं स्तम्भ किया है। और 'धम्माणुओगचिंताए' का अर्थ है-साधु को उसी स्थान की याचना करनी चाहिए जिसमें धर्मानुयोग भली-भांति साधा जा सके अर्थात् जहां संयम में बिल्कुल दोष न लगे ऐसे स्थान में ठहरना चाहिए। ॥प्रथम उद्देशक समाप्त। बृहत्कल्प सूत्र। अर्द्धमागधी कोष भा०२ पृ०५०७, भा० १, प०१०१
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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