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पञ्चम अध्ययन, उद्देशक १
३२७ बन्धा हुआ, आरोपित, स्थिर एवं अचलायमान हो तो अपवाद मार्ग में वहां पर साधु वस्त्र सुखा भी सकता
है।
प्रस्तुत सूत्र में मचान आदि स्थानों पर भी वस्त्र सुखाने का निषेध किया गया है। इसका उद्देश्य आचाराङ्ग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पहले अध्ययन के ७वें उद्देशक में आहार विधि के प्रकरण में दिया गया उद्देश्य ही है। यदि मञ्च एवं मकान आदि की छत पर जाने का मार्ग प्रशस्त है और वहां किसी भी जीव की विराधना होने की सम्भावना नहीं है तो साधु मञ्च एवं मकान आदि की छत पर भी वस्त्र सुखा सकता है। वस्तुतः सूत्रकार का उद्देश्य यह है कि साधु को प्रासुक एवं निर्दोष भूमि पर ही वस्त्र सुखाने चाहिएं, जिससे किसी भी प्राणी की हिंसा न हो।
'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें।
॥ प्रथम उद्देशक समाप्त॥