________________
पञ्चम अध्ययन, उद्देशक १
३१३
संते नो० ॥ १४५ ॥
छाया - स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा स यानि पुनः वस्त्राणि जानीयात् विरूपरूपाणि महाधनमूल्यानि तद्यथा आजिनानि वा श्लक्ष्णानि वा श्लक्ष्णकल्याणानि वा आजकानि वा कायकानि वा क्षौमिकानि वा दूकूलानि वा पट्टानि वा मलयानि वा प्रनुन्नानि वा अंशुकानि वा चीनांशुकानि वा देशरागाणि वा अमिलानि वा गज्जफलानि वा फालिकानि वा कोयवानि वा कम्बलकानि वा प्रावराणि वा अन्यतराणि वा तथाप्रकाराणि वा वस्त्राणि वा महाधनमूल्यानि लाभे सति न प्रतिगृहीयात् ॥
स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा आजिनप्रावरणीयानि वस्त्राणि जानीयात्, तद्यथा उद्राणि वा पैसानि वा पेशलानि वा कृष्णमृगाजिनानि वा नीलमृगाजिनानि वा, गौरमृगाजिनानि वा कनकानि वा कनककान्तीनि वा कनकपट्टानि वा कनकखचितानि वा कनकस्पृष्टानि वा व्याघ्राणि वा व्याघ्रचर्मविचित्रितानि वा आभरणानि वा आभरणविचित्राणि वा अन्यतराणि तथाप्रकाराणि आजिनप्रावरणानि वस्त्राणि लाभे सति नो प्रतिगृण्हीयात् ।
पदार्थ से भिक्खू वा० - वह साधु अथवा साध्वी से जाई पुण वत्थाइं - जिन वस्त्रों के विषय में । जाणिज्जा - जाने । विरूवरूवाई- नाना प्रकार के । महद्धणमुल्लाइं- बहुमूल्य वस्त्र । तं० - जैसे कि । आईणगाणि वा - मूषक आदि के चर्म से निष्पन्न | साहिणाणि वा श्लक्ष्ण- अत्यन्त सूक्ष्म । सहिणकल्लाणाणि वा - सूक्ष्म और कल्याणकारी। आयाणि वा भेड़ या भेड़ के सूक्ष्म रोमों से निर्मित वस्त्र । कायाणि वा इन्द्र नील वर्ण की कपास से निष्पन्न । खोमियाणि वा सामान्य कपास से बनाया गया वस्त्र । दुगुल्लाणि - गौड़ देश में उत्पन्न होने वाली विशिष्ट प्रकार की कपास से निष्पन्न। पट्टाणि पट्टसूत्र - रेशम से निष्पन्न। मलयाणि वा मलयज सूत्र से बनाया गया वस्त्र । पन्नुन्नाणि वा- वल्कल के तंतुओं से निर्मित वस्त्र । अंसुयाणि वा - अंशुक देश-विदेश में उत्पन्न होने वाला महार्घ वस्त्र । चीणंसुयाणि वा चीनांशुक - चीन देश का बना हुआ रेशमी वस्त्र । देसरागाणि वा - नाना प्रकार के देशों के बने हुए विशिष्ट वस्त्र या देश राग में निर्मित वस्त्र । अमिलाणि वा आमिल नामक देश में उत्पन्न होने वाले वस्त्र । गज्जफलाणि वा- गजफल नामक देश के विशिष्ट वस्त्र । फालियाणि वा फलिय देश में उत्पन्न होने वाले असाधारण वस्त्र । कोयवाणि वा- कोयव नाम के देश के बने हुए। कंबलगाणि वा - विशिष्ट प्रकार के कम्बल। पावराणि वा- प्रावरण-कम्बल विशेष तथा इसी प्रकार के । अन्नयराणि वा कई एक अन्य वस्त्र विशेष । तह०- तथाप्रकार के वस्त्र । महद्बणमुल्लाइं- जो बहुमूल्य हैं ऐसे वस्त्रों के । लाभे संते-मिलने पर । नो पडिगाहिज्जा - साधु उन्हे ग्रहण न करे।
- वह साधु या साध्वी । अइण्णपाउरणाणि चर्म निष्पन्न पहरने वाले । वत्थाणि वा वस्त्रों को। जाणिज्जा - जाने । तंजहा जैसे कि । उद्दाणि वा-सिंधु देश में होने वाले मत्स्य के सूक्ष्म चर्म से निष्पन्न वस्त्र । साणि वा-सिंधु देश में होने वाले पशुओं के सूक्ष्म चर्म से बने हुए तथा । पेसलाणि वा उस चर्म पर के सूक्ष्म रोमों से निष्पन्न हुए वस्त्र तथा । किण्हमिगाईणगाणि वा - कृष्णमृग के चर्म के बने हुए वस्त्र । नीलमिगाईणगाणि वा- नीलमृग के चर्म से निष्पन्न और गोरमि०-गौर-श्वेत मृगचर्म से निष्पन्न वस्त्र । कणगाणि वा कनक- सोने की झाल से बनाए गए तथा । कणगकंताणि वा-कनक के समान कांति वाले और । कणगपट्टाणि वा- सोने