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________________ ३१० श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध __ पदार्थ- से भिक्खू वा-वह साधु अथवा साध्वी। वत्थपडिया-वस्त्र की याचना करने हेतु। अद्धजोयणमेराए-आधे योजन की मर्यादा से। परं-आगे।गमणाए-जाने का। नो अभिसंधारिजा-विचार न करे। मूलार्थ-साधु या साध्वी को वस्त्र की याचना करने के लिए आधे योजन से आगे जाने का विचार नहीं करना चाहिए। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में वस्त्र ग्रहण करने के लिए क्षेत्र मर्यादा का उल्लेख किया गया है। साधु या साध्वी को आधे योजन से आगे के क्षेत्र में जाकर वस्त्र लाने का संकल्प भी नहीं करना चाहिए। जैसे आगम में साधु-साध्वी को आधे योजन से आगे का लाया हुआ आहार-पानी करने का निषेध किया गया है, उसी तरह प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्र का अतिक्रान्त करके वस्त्र ग्रहण करने का भी निषेध किया गया है। ___ वृत्तिकार ने इस पर कोई विशेष प्रकाश नहीं डाला है, उन्होंने केवल शब्दों का अर्थ मात्र किया है। यह नहीं बताया कि यह आदेश सामान्य सूत्र से सम्बद्ध है या अभिग्रह विशेष से। इस विषय पर और प्रकाश डालते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्- से भि० से जं• अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई जहा पिंडेसणाए भाणियव्वं । एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं बहवे साहम्मिणीओ बहवे समणमाहण० तहेवपुरिसंतरकडा जहा पिंडेसणाए॥१४३॥ छाया- स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा यत् स अस्वप्रतिज्ञया एकं साधर्मिकं समुद्दिश्य प्राणानि यथा पिंडैषणायां (तथैव) भणितव्यम्। एवं बहवः साधर्मिकाः एकां साधर्मिणी वह्वयः साधर्मिण्यः बहवः श्रमणब्राह्मण • तथैव पुरुषान्तरकृताः यथा पि डैषणायाम्। पदार्थ- से भिक्खू वा-वह साधु अथवा साध्वी। से जं०-वस्त्र के विषय में इस प्रकार जाने। अस्सिंपडियाए-जिसके पास धन नहीं है उसकी प्रतिज्ञा से। एग-एक। साहम्मियं-साधर्मिक का। समुद्दिस्सउद्देश्य रख कर।पाणाइं-प्राणियों की हिंसा करके।जहा-जैसे।पिंडेसणाए-पिंडैषणा अध्ययन में आहार विषयक वर्णन किया गया है, ठीक उसी प्रकार इस स्थान में वस्त्र विषयक। भाणियव्वं-वर्णन कहना चाहिए। एवं-इसी प्रकार। बहवे-साहम्मिया-बहुत से साधर्मी साधु। एगं साहम्मिणिं-एक साधर्मिणी साध्वी तथा। बहवे साहम्मिणीओ-बहुत सी साध्विएं और। बहवे समणमाहण-बहुत से शाक्यादि श्रमण और ब्राह्मणादि। तहेवउसी प्रकार।पुरिसंतरकडा-पुरुषान्तर कृत।जहा-जैसे कि-पिंडेसणाए-पिंडैषणा अध्ययन में कहा गया है। __ मूलार्थ-संयमशील साधु या साध्वी को वस्त्र के विषय में यह जानना चाहिए कि जिसके पास धन नहीं है उसकी प्रतिज्ञा से कोई व्यक्ति एक या अनेक साधु या साध्वियों के लिए प्राण भूत आदि की हिंसा करके वस्त्र तैयार करे तो साधु-साध्वी को वह वस्त्र नहीं लेना चाहिए। १ बृहत्कल्प सूत्र, ४, १२, भगवती सूत्र, श० ७, उ० १॥
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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