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चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक १
२९१ पदार्थ-से भिक्खू वा २-वह साधु अथवा साध्वी। एवं-इस प्रकार। नो वइज्जा-न बोले, यथा-। नभोदेवेति वा-आकाश देव है।गज्जदेवेत्ति वा-गाज-बादलों की गर्जना देव है। विज्जुदेवेत्ति वा-विद्युत देव है या। पवुट्ठदे०-देव वर्षता है। निवुट्ठदेवेत्ति वा-निरन्तर देव बरसता है। पडउ वा वासं-वर्षा बरसे। मा वा पडउ-या वर्षा न बरसे। निष्फज्जउ वा सस्सं-धान्य उत्पन्न हों। मा वा निप्फज्जउ सस्सं-धान्य उत्पन्न न हों। विभाउ वा रयणी-रात्रि व्यतिकान्त या शोभा यक्त हो। मा वा विभाउ०-या शोभा यक्त न हो। उदेउ वा सूरिए-सूर्य उदय हो।मा वा उदेउ-या उदय न हो।सोवा-वह। राया-राजा। जयउ-विजयी बने। वा-या।मा जयउ-विजयी न बने। एयप्पगारं-इस प्रकार की। भासं-भाषा को। नो भासिजा-न बोले। पन्नवं-प्रज्ञावान्बुद्धिमान्। से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी यदि कारण हो तो। अंतलिक्खेत्ति वा-आकाश को आकाश कहे, इस प्रकार यावन्मात्र आकाश के नाम हैं उन नामों से आकाश को पुकारे। गुज्झाणुचरिएत्ति वा-या यह आकाश देवताओं के चलने का मार्ग है इस लिए इसको गुह्यानुचरित भी कहते हैं अथवा। संमुच्छिए-संमूर्छिम जल। निवइए-पड़ता है या।पयोए-यह मेघ जल बरसाता है, ऐसा। वइज्जा-कहे या। वुट्ठवलाहगेत्ति-ऐसा कहे कि बादल बरस रहा है। एयं खलु-निश्चय ही यह। तस्स-उस।भिक्खुस्स-भिक्षु।वा-और।भिक्खुणीएसाध्वी का। सामग्गियं-सम्पूर्ण आचार है। जं-जो। सव्वठेहि-ज्ञान दर्शन और चारित्र रूप अर्थों से युक्त और। समिए-पांच समितियों के।सहिए-सहित।सया-सदा।जइज्जासि-निरवद्य भाषा बोलने का यत्न करे।त्तिबेमिइस प्रकार मैं कहता हूँ। .
____ मूलार्थ-संयमशील साधु अथवा साध्वी इस प्रकार न कहे कि आकाश देव है, गर्ज (बादल) देव है, विद्युत देव है, देवं बरस रहा है, या निरन्तर बरस रहा है, एवं वर्षा बरसे या न बरसे। धान्य उत्पन्न हों या न हों। रात्रि व्यतिक्रान्त हो या न हो। सूर्य उदय हो या न हो। और यह भी न कहे कि इस राजा की विजय हो या इसकी विजय न हो। आवश्यकता पड़ने पर प्रज्ञावान् साधु अथवा साध्वी इस प्रकार बोले कि यह आकाश है , देवताओं के गमनागमन करने से इसका नाम गुह्यानुचरित भी है। यह पयोधर जल देने वाला है। संमूर्छिम जल बरसाता है, या यह मेघ बरसता है, इत्यादि भाषा बोले। जो साधु या साध्वी साधना रूप पांच समिति तथा तीन गुप्ति से युक्त हैं उनका यह समग्र आचार है, अतः उसके परिपालन में वे सदा प्रयत्नशील रहते हैं, इस प्रकार मैं कहता हूँ।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि संयमनिष्ठ एवं विवेकशील साधु-साध्वी को अयथार्थ भाषा का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। जैसे-आकाश, बादल, बिजली, वर्षा आदि को देव कहकर नहीं पुकारना चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों में दैवी शक्ति की कल्पना करके उन्हें देवत्व के सिंहासन पर बैठाना यथार्थता से बहुत दूर है। अतः इसमें असत्यता का अंश भी रहता है। इस कारण साधु को उन्हें देवत्व के सम्बोधन से न पुकार कर व्यवहार में प्रचलित आकाश, बादल, बिजली या विद्युत आदि शब्दों से ही उनका उच्चारण करना चाहिए। - इसी तरह साधु-साध्वी को यह भी नहीं कहना चाहिए कि वर्षा हो या न हो, धान्य एवं अन्न उत्पन्न हो या न हो, शीघ्रता से रात्रि व्यतीत होकर सूर्योदय हो या न हो, अमुक राजा विजयी हो या न हो।