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श्री आचारांग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध भासं सावजं सकिरियं कक्कसं कडुयं निठुरं फरुसं अण्हयकर छेयणकरि भेयणकरिं परियावणकरिं उद्दवणकरिं भूओवघाइयं अभिकंख नो भासिज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा, जा य भासा सच्चा सुहुमा जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारंभासं असावजंजाव अभूओवघाइयं अभिकंख भासं भासिज्जा॥१३३॥
छाया- स भिक्षुर्वा स यत् पुनः जानीयात् पूर्वं भाषा अभाषा भाष्यमाणा भाषा भाषा भाषासमयव्यतिक्रान्ता च भाषिता भाषा अभाषा।
स भिक्षुर्वा स यत् पुनः जानीयात् या च भाषा सत्या १ या च भाषा मृषा २ या च भाषा सत्यामृषा ३ या च भाषा असत्याऽमृषा ४ तथाप्रकारां भाषां सावद्यां सक्रियां कर्कशां कटुकां निष्ठुरां परुषां, आश्रवकरी छेदनकरीं भेदनकरी परितापनकरी, अपद्रावणकरी भूतोपघातिकां अभिकांक्ष्य नो भाषेत, स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा स यत् पुनः जानीयात् या च भाषा सत्या सूक्ष्मा या च भाषा असत्याऽमृषा तथाप्रकारां भाषां असावद्यां यावत् अभूतोपघातिकाम् अभिकांक्ष्य भाषां भाषेत।
पदार्थ से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी।से-वह। जं-जो। पुण-फिर। जाणिजा-जाने। पुट्विं भासा-भाषण करने से पूर्व जो भाषा द्रव्य वर्गणा के पुद्गल एकत्र हुए हैं वे भाषा के योग्य होने पर भी।अभासाअभाषा-भाषा नहीं है किन्तु।भासिजमाणी भासा-भाषण करते हुए ही वह। भासा-भाषा होती है। च-फिर। णं-वाक्यालंकार में है। भासा समयवीइक्कंता-भाषा समय से व्यतिक्रान्त हुई। भासिया भासा-भाषण के पश्चात् वह भाषा।अभासा-अभाषा होती है। इसका तात्पर्य यह है कि भूत और भविष्यत् काल को छोड़कर केवल वर्तमान काल में बोली जाने वाली भाषावर्गणा के पदगलों को ही भाषा कह सकते हैं। अब भाषण करने के योग्य तथा अयोग्य भाषा के विषय में कहते हैं। से भिक्खू वा०-यह साधु या साध्वी। से जं पुण जाणिज्जा-फिर इस प्रकार जाने।जा य भासा-और जो भाषा। सच्चा-सत्य है।जा य भासा-तथा जो भाषा।मोसा-मृषा असत्य है। जा य भासा-और जो भाषा। सच्चामोसा-सत्यासत्य अर्थात् मिश्र है। जा य भासा-एवं जो भाषा। असच्चाऽमोसा-असत्याऽमृषा अर्थात् व्यवहार भाषा है। तहप्पगारं-तथाप्रकार की।भासं-भाषा जो कि।सावजंसावद्य-पाप जनक है तथा। कक्कसं-कर्कश-कठोर है। सकिरियं-क्रिया युक्त है। कडुयं-कटुक है- चित्त को उद्वेग करने वाली है। निठुरं-निष्ठुर है। फरुसं-दूसरे के मर्म को प्रकाश करने वाली है तथा।अण्हयकरिंकर्मों का आस्रवण करने वाली है। छेयणकरिं-जीवों का छेदन करने वाली है तथा। भेयणकरि-भेदन करने वाली है। परियावणकरि-परिताप देने वाली है एवं। उद्दवणकरि-उपद्रव करने वाली है और। भूओवघाइयंभूतोपघातिनी है-जीवों का विनाश करने वाली है। अभिकंख-मन में विचार कर इस प्रकार की सत्य भाषा भी।नो भासिज्जा-न बोले, अर्थात् जिस भाषा से पर प्राणी का अहित होता हो तथा उसे कष्ट पहुंचता हो तो ऐसी भाषा यदि सत्य भी हो तो भी साधु न बोले तथा। से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। से-वह। जं-जो। पुण-फिर। जाणिज्जा-यह जाने कि। जा य भासा-जो भाषा। सच्चा-सत्य है-यथार्थ है। सुहुमा-सूक्ष्म विचार परिपूर्ण । जा