________________
चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक १
२८५ .७ अध्यात्म वचन- जिस वचन के बोलने का चित्त में निश्चय किया गया हो, फिर उसको छिपाने के लिए अन्य वचन के बोलने का विचार होने पर भी अकस्मात् वही वचन मुख से निकले उसे अध्यात्म वचन कहते हैं। जैसे कि- कोई वणिक् रूई के व्यापार के लिए किसी अन्य ग्राम या नगर में गया, उसने अपने मन में निश्चय किया कि मैं किसी अन्य व्यक्ति के पास रूई का नाम नहीं लूंगा। परन्तु जब वह तृषातुर होकर किसी कूप पर पानी पीने के लिए गया तब उसने वहां पानी भरने वालों से कहा कि मुझे शीघ्र ही रूई पिलाओ ! इसी का नाम अध्यात्म वचन है। वृत्तिकार भी यही लिखते हैं- "अध्यात्म-हृदयगतं-तत्परिहारेणान्यद् भणिष्यतस्तदेव सहसा पतितम्।"
८ उपनीत वचन- प्रशंसा युक्त वचन को उपनीत वचन कहते हैं, यथा-यह स्त्री रूपवती है इत्यादि।
९ अपनीत व-निन्दा युक्त वचन अपनीत वचन है, यथा-यह स्त्री कितनी कुरूपा-भद्दी है।
१० उपनीतापनीत व- पहले प्रशंसा करना और बाद में निन्दा करना इसे उपनीतापनीत वचन कहते हैं, यथा- यह स्त्री सुरूपा-रूपवती तो है परन्तु व्यभिचारिणी है।
. ११ अपनीतोपनीत व-पहले निन्दा और पीछे प्रशंसा युक्त वचन अपनीतोपनीत वचन है। यथा-यह स्त्री रूप हीन होने पर भी सदाचारिणी है।
१२ अतीत काल वचन-भूतकाल के बोधक वचन को अतीतकाल वचन कहते हैं। यथा-(घटं कृतवान् देवदत्तः) देवदत्त ने घड़े को बनाया था।
१३ वर्तमान काल वचन-वर्तमान काल का बोधक वचन, यथा-करोति, पठति-करता है, पढ़ता है इत्यादि।
१४ अनागत काल वचन-भविष्यत् काल का बोधक वचन, यथा-करिष्यति, पठिष्यति, गमिष्यतिकरेगा, पढ़ेगा और जाएगा इत्यादि।
१५ प्रत्यक्ष वचन-प्रत्यक्ष के बोधक वचन को प्रत्यक्ष वचन कहते हैं, यथा-देवदत्तोऽयम्-यह देवदत्त है, इत्यादि।
१६ परोक्ष वचन-परोक्ष का बोधक वचन यथा-स देवदत्तः-वह देवदत्त । अब सूत्रकार शब्द का कृतकत्व सिद्ध करते हुए कहते हैं
मूलम्-से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा पुट्विं भासा अभासा भासिजमाणी भासा भासा भासासमयवीइक्कंता चणं भासिया भासा अभासा। ... से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा जा य भासा सच्चा १ जा य भासा मोसा २ जा य भासा सच्चामोसा ३ जा य भासा असच्चाऽमोसा ४ तहप्पगारं