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________________ २८४ श्री आचारांग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध रहना चाहिए। उसे पहले उदयमान कषायों को उपशान्त करके फिर बोलना चाहिए। भाषा के स्वरूप के सम्बन्ध में यहां कुछ बताना अनुचित एवं अप्रासंगिक नहीं होगा। साधारणतया मुंह द्वारा बोले जाने वाले शब्दों के समूह को भाषा कहते हैं। जैन आगमों में शब्द को पुद्गल माना गया है। छ भारतीय दर्शन शब्द को आकाश का गण मानते हैं। परन्त यह मान्यता उचित प्रतीत नहीं होती। क्योंकि आकाश अरूपी है, अतः उसका गुण भी अरूपी ही होगा। परन्तु, शब्द रूपी है, इस लिए वह अरुपी आकाश का गुण नहीं हो सकता। और आज वैज्ञानिक साधनों ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि शब्द आकाश का गुण नहीं, प्रत्युत स्वयं एक मूर्त पदार्थ है। वह पुद्गल के द्वारा रोका जाता है, ग्रहण किया जाता है और स्थानान्तर में भी भेजा जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि शब्द आकाश का गुण नहीं, प्रत्युत भाषा वर्गणा के पुद्गलों का समूह है। अतः भाषा वर्गणा के पुद्गल अचित्त एवं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से युक्त हैं तथा परिवर्तनशील हैं। व्यक्ति द्वारा बोली जाने वाली भाषा चार प्रकार की मानी गई है- १ सत्य भाषा, २ असत्य भाषा, ३ मिश्र भाषा (जिसमें सत्य और असत्य की मिलावट हो) और ४ असत्यामृषा (जिस भाषा में न झूठ है और न सत्य है, जिसे व्यवहार भाषा कहते हैं)। इसमें साधु पहली और चौथी अर्थात् सत्य एवं व्यवहार भाषा का प्रयोग कर सकता है। परन्तु, उसे दूसरी और तीसरी अर्थात् असत्य एवं मिश्र भाषा का प्रयोग करना नहीं कल्पता। इससे यह स्पष्ट हो गया कि साधु को भाषा के दोषों का परित्याग करके विवेक-पूर्वक बोलना चाहिए। भाषा के दोषों से बचने के लिए सूत्रकार ने १६ प्रकार के वचनों का उल्लेख किया है। इसमें प्रयुक्त द्विवचन संस्कृत व्याकरण के अनुसार रखा गया है। क्योंकि प्राकृत में एक वचन और बहुवचन ही होता है। द्विवचन का प्रयोग संस्कृत में होता है। अतः उक्त भाषा को ध्यान में रखकर ही सूत्रकार ने द्विवचन शब्द का उल्लेख किया हो ऐसा प्रतीत होता है। ये वचनों के १६ प्रकार इस तरह से हैं १ एकवचन-(संस्कृत भाषा में)- वृक्षः, घटः, पटः इत्यादि। ' (प्राकृत भाषा में)- वच्छो-रुक्खो, घडो, पडो इत्यादि २ द्विवचन-वृक्षौ, घटौ, पटौ इत्यादि, प्राकृत में द्विवचन होता ही नहीं। . ३ बहुवचन-वृक्षाः, घटाः, पटाः, इत्यादि। (प्राकृत में)-वच्छा, रुक्खा, घडा, पड़ा इत्यादि। ४ स्त्रीलिंग वचन- (सं०) कन्या, वीणा, राजधानी इत्यादि। (प्रा.) कन्ना, वीणा, रायहाणी इत्यादि। ५ पुरुषलिंग वचन-(सं०) घटः, पटः, कृष्णः, साधुः इत्यादि। ___ (प्राकृत०) घडो, पडो, कण्हो, साहू इत्यादि। ६ नपुंसकलिंग व०-पत्रम्, ज्ञानम्, चारित्रम्, दर्शनम् इत्यादि। (प्राकृत में-) पत्तं, नाणं, चरित्तं, दंसणं इत्यादि।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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