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चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक १ बोलते हैं तथा। जे मायाए वा० - जो माया छलपूर्वक बोलते हैं। जे लोभा वा- जो लोभ के वशीभूत होकर। वायं विरंजंति वचन का प्रयोग करते हैं। वा अथवा । जाणओ वा फरुसं वयंति-जान कर कठोर वचन बोलते हैं, अर्थात् किसी के दोष को जानते हुए उसे उद्घाटन करने के लिए कठोर भाषा का प्रयोग करते हैं। वा अथवा । अजाणओ-नहीं जानते हुए। फरुसंक - कठोर वचन बोलते हैं । सव्वं चेयं - यह सब । सावज्जं - सावद्य - हिंसापाप युक्त वचन हैं अत: । विवेगमायाए - विवेक को ग्रहण करके अर्थात् विवेक युक्त होकर । वज्जिज्जा - साधु इन सावद्य वचनों को छोड़ दे अर्थात् सावद्य भाषा न बोले, तथा । धुवं चेयं जाणिज्जा - यह पदार्थ ध्रुव है - निश्चित है ऐसा जाने । च- और । अधुवं चेयं जाणिज्जा- यह पदार्थ अध्रुव अनिश्चित है ऐसा जाने। असणं वा ४- यह साधु अशनादि चतुर्विध आहार । लभिय-लेकर आएगा या । नो लभिय-लेकर नहीं आएगा । भुंजिय- कोई साधु आहार के लिए गया हो और किसी कारणवश यदि उसे विलम्ब हो गया हो तो अन्य साधु यह न कहें कि वह रास्ते में ही आहार करके आएगा या । नो भुंजिय- बिना आहार किए ही आएगा । अदुवा अथवा । आगओ - राजा आदि पीछे आए थे। अदुवा - अथवा । नो आगओ - नहीं आए थे । अदुवा अथवा । एइ-राजा आदि आता है। अदुवा - अथवा। नो एइ-नहीं आ रहा है । अदुवा - अथवा । एहिइ आएगा । अदुवा - अथवा । नो एहिइ - नहीं आएगा इस प्रकार की निश्चित भाषा न बोले । अब क्षेत्र के विषय में कहते हैं । इत्थवि - अमुक व्यक्ति यहां पर ही । आगए-आया था। इत्थवि - यहां पर । नो आगए - नहीं आया था । इत्थवि - यहां पर । एइ-आता है। इत्थवियहां पर । नो एति - नहीं आता है। इत्थवि - यहां पर ही । एहिति आएगा । इत्थवि नो एहिति - यहां पर नहीं आएगा, इस प्रकार की निश्चय रूप भाषा न बोले किन्तु । अणुवी - विचार कर । निट्ठाभासी - निश्चय पूर्वक बोलने वाला अर्थात् निश्चय किए जाने पर बोलने वाला। समियाए - भाषा समिति से युक्त । संजए - साधु । भासं भासिज्जा- - भाषा को बोले । तंजहा - जैसे कि । एगवयणं १ - एक वचन । दुवयणं २- द्विवचन। बहुक ३बहुवचन । इत्थि ४ - स्त्री वचन । पुरि० - ५ - पुरुष वचन । नपुंसगवयणं ६ - नपुंसक वचन । अज्झत्थक ७अध्यात्म वचन । उवणीयवयणं ८-उपनीत प्रशंसाकारी वचन । अवणीयवयणं ९- अपनीत निन्दाकारी वचन । उवणीयअवणीयक १० - प्रशंसा और निन्दा युक्त वचन । अवणीयडवणीय क० ११ - निन्दा और प्रशंसायुक्त वचन । ती १२ - अतीत काल का वचन । पडुप्पन्नव० १३ - वर्तमान काल का वचन । अणागयक १४अनागत काल का वचन । पच्चक्खवयणं १५ - प्रत्यक्ष वचन । परोक्खव०- १६- और परोक्ष वचन आदि को जान कर । से-वह-साधु। एगवयणं - एक वचन । वइस्सामीति - बोलूंगा। ऐसा विचार करके । एगवयणं- एक वचन। वइज्जा-बोले जाव - यावत् । परुक्खवयणं-परोक्ष वचन । वइस्सामीति - बोलूंगा ऐसा विचार करके । परुक्खवयणं-परोक्ष वचन । वइज्जा - बोले । इत्थि वेस - यह स्त्री है। पुरिसो वेस - यह पुरुष है। नपुंसगं वेसयह नपुंसक है। एयं वा - यह स्त्री ही है अथवा । च - और। एयं यह । अन्नं वा और कोई है। च पुनः । एयं - यह । अणुवी - विचार कर | निट्ठाभासी - निश्चित एकान्त भाषा बोलने वाला। संजए - साधु । समियाए - भाषा समिति युक्त । भासं भाषा को । भासिज्जा - बोले । इच्चेयाइं ये पूर्वोक्त तथा आगे कहे जाने वाले। आययणाईभाषा के दोष स्थानों को। उवातिकम्म-अति क्रम करके उल्लंघन करके भाषण करे। अह भिक्खू अथ भिक्षु । चत्तारि - चार प्रकार की । भासज्जायं भाषाओं को । जाणिज्जा - जानने का यत्न करे। तंजहा-जैसे कि । सच्चमेगं पढमं भासज्जायं-पहली सत्य भाषा है। बीयं मोसं-दूसरी मृषा भाषा है। तइयं सच्चामोसं तीसरी सत्य - मृषा अर्थात् मिश्र भाषा है । जं-जो भाषा । नेव-न । सच्चं - सत्य है । नेव मोसं-न मृषा है; तथा । नेव-न । सच्चामोसं
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