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________________ चतुर्थ अध्ययन - भाषैषणा प्रथम उद्देशक 1 तृतीय अध्ययन में ईर्यासमिति का वर्णन किया गया है। अतः संयम पथ पर गतिशील मुनि को किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए, यह प्रस्तुत अध्ययन में बताया गया है । यह अध्ययन दो उद्देशों में विभक्त है। पहले उद्देशे में वचन, विभक्ति आदि का वर्णन किया गया है और दूसरे उद्देश में ऐसी भाषा का प्रयोग करने का निषेध किया गया है, जिससे अपने या दूसरे के मन में क्रोध आदि विकारों की उत्पत्ति होती हो। इस तरह साधु को कैसी भाषा बोलनी चाहिए इसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - से भिक्खूं वा २ इमाई वयायाराइं सुच्चा निसम्म इमाई अणागाराई अणारियपुव्वाई जाणिज्जा जे कोहा वा वायं विउंजंति जे माणा वा॰ जे मायाए वा॰ जे लोभा वा वायं विउंजंति जाणओ वा फरुसं वयंति अजाणओ वा फ सव्वं चेयं सावज्जं वज्जिज्जा. विवेगमायाए, धुवं चेयं जाणिज्जा अधुवं चेयं जाणिज्जा असणं वा ४ लभिय नो लभिय भुंजिय नो भुंजिय अदुवा आगओ अदुवा नो आगओ अदुवा एइ अदुवा नो एइ अदुवा एहिइ अदुवा नो एहिइ, इत्थवि आगए इत्थवि नो आगए इत्थवि एति इत्थवि नो एति इत्थवि एहिति इत्थवि नो एहिति ॥ अणुवीइ निट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा, तंजहां- एगवयणं १ दुवयणं २ बहुव० ३ इत्थि० ४ पुरिस० ५ नपुंसगवयणं ६ अज्झत्थव ७ उवणीयवयणं ८ अवणीयवयणं ९ उवणीयअवणीयक १० अवणीयडवणीय a० ११ तीयक० १२ पडुप्पन्नव० १३ अणागयक० १४ पच्चक्खवयणं १५ परुक्खव० १६ से एगवयणं वइस्सामीति एगवयणं वइज्जा जाव परुक्खवयणं वइस्सामीति परुक्खवयणं वइज्जा, इत्थी वेस पुरिसो वेस, नपुंसगं वेस एयं वा चेयं अन्नं वा चेयं अणुवीइ निट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा, इच्चेयाइं आययणाइं उवातिकम्म ॥ अह भिक्खू जाणिज्जा चत्तारि भासज्जायाई, तंजहा - सच्चमेगं पढमं भासज्जायं १ बीयं मोसं २ तइयं सच्चामोस ३ जं नेव सच्चं नेव मोसं नेव सच्चामोसं असच्चामोसं नाम तं चउत्थं
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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