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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
प्रति भी द्वेष भाव नहीं रखता। वह मारने एवं पूजा करने वाले दोनों पर समभाव रखता है, दोनों को मित्र समझता है और दोनों का हित चाहता है। यही श्रेणी आत्मा से परमात्मा पद को प्राप्त करने की या साधक से सिद्ध बनने की श्रेणी है ।
'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें ।
॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
॥ तृतीय अध्ययन समाप्त ॥