SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध परो बाहाहिं गहाय आगसिज्जा, तं नो सुमणे सिया जाव समाहिए तओ सं. गामा० दू०॥१२५॥ ____ छाया- स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् न मृत्तिकागतैः पादैः हरितानि छित्वा २ विकुन्य २ विपाट्य २. उन्मार्गेण हरितवधाय गच्छेत्। यदेनां पादाभ्यां मृत्तिकां क्षिप्रमेव हरितानि अपहरन्तु, मातृस्थानं संस्पृशेत् न एवं कुर्यात् स पूर्वमेव अल्पहरितं मार्ग प्रतिलेखयेत् ततः संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत्। स भिक्षुर्वा वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्तराले तस्य वप्राणि वा परिखा वा प्राकाराणि वा तोरणानि वा अर्गलानि वा अर्गलपाशका वा गर्ता वा दो वा सति परक्रमे संयतमेव परिक्रामेन्न ऋजुकं गच्छेत्, केवली ब्रूयाद् आदानमेतत्, स तत्र पराक्रममाणः प्रस्खलेद् वा २ स तत्र प्रस्खलन् वा २ वृक्षान् वा गुच्छानि वा गुल्मानि वा लताः वा तृणानि वा गहनानि वा हरितानि वा अवलम्ब्य २ उत्तरेत् ये तत्र प्रातिपथिका उपागच्छन्ति तेभ्यः पाणिं याचेत् याचित्वा ततः संयतमेव अवलम्ब्य २ उत्तरेत् ततः संयतमेव ग्रामानुग्राम गच्छेत्। स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्तराले तस्य यवसानि वा शकटानि वा रथा वा स्वचक्राणि वा परचक्राणि वा सैन्यं वा विरूवरूपं संनिरुद्धं प्रेक्ष्य सति परक्रमे संयतमेव पराक्रमेत् न ऋजुकं गच्छेत् स परः सेनागतः वदेत्, आयुष्मन् ! एष श्रमणः सेनायाः अभिनिवारिकां करोति एनं बाहुना गृहीत्वा आकर्षत स पर: बाहुभ्यां गृहीत्वा आकर्षेत् तन्न सुमनाः स्यात्, यावत् समाधिना, संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत्।। पदार्थ- से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी। गामा-ग्रामानुग्राम। दूइजमाणे-जाते हुए। मट्टियाहिं-मिट्टी या कीचड़ से भरे हुए। पाएहिं-पैरों की मिट्टी या कीचड़ उतारने के लिए। हरियाणि-हरी वनस्पति को। छिंदिय २-छेद २ कर। विकुजिय २-या हरे पत्ते एकत्रित करके।विफालिय २-हरित वनस्पति को छील कर मिट्टी को न उतारे तथा मिट्टी को उतारने के लिए। हरियवहाए-हरित काय के वध के लिए। उम्मग्गेण-उन्मार्ग से। नो गच्छेजा-गमन न करे। जमेयं-जैसे यह। पाएहिं-पैरों की। मट्टियं-मिट्टी को। खिप्पामेव-शीघ्र ही। हरियाणि-हरितकाय। अवहरंतु-अपहरण करे, अर्थात् हरित काय के स्पर्श से स्वयमेव मिट्टी उतर जाएगी, यदि इस प्रकार के भाव लाकर वह हरियाली पर चलता है, तो। माइट्ठाणं संफासेमातृस्थान-कपट का सेवन करता है अतः। एवं-इस प्रकार। नो करिजा-न करे किन्तु।से-वह भिक्षु। पुव्वामेवपहले ही। अप्पहरिय-हरितकाय से रहित। मग्गं-मार्ग का। पडिलेहिजा-प्रतिलेखन करे। तओ-तदनन्तर। सं०-यत्नापूर्वक । गामा०-ग्रामानुग्राम। दू-विहार करे। से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। गामाणुगाम-एक ग्राम से दूसरे ग्राम को। दूइजमाणे-जाता हुआ।से-उसके।अंतरा-मार्ग में यदि।वप्पाणि वा-खेत की क्यारियें या। क-कोट की खाई या। प०-प्रकोट। तो०-तोरण-द्वार या। अ०-अर्गला-कपाट निरोधक- कीली। अग्गलपासगाणि वा-अर्गला पाशक। गड्डाओ वा-गर्त खड्डे अथवा। दरीओ-पर्वत की गुफाएं आ जाएं तो। सइ परक्कमे-अन्य मार्ग के होने पर वह उस मार्ग से।संजयामेव-यत्नापूर्वक।परिक्कमिजा-गमन करे।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy