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तृतीय अध्ययन, उद्देशक २
२५७ पहुंचाता हुआ नदी को पार करे। यदि नदी पार करते समय उसे अपने उपकरण बोझ रूप प्रतीत होते हों
और उन्हें लेकर नदी से पार होना कठिन प्रतीत होता हो, तो वह उन्हें वहीं छोड़ दे। यदि उपकरण लेकर पार होने में कठिमता का अनुभव न होता हो तो उन्हें लेकर पार हो जाए। परन्तु, नदी के किनारे पर पहुंचने के पश्चात् जब तक शरीर एवं वस्त्रों से पानी टपकता हो या वे गीले हों तब तक वह वहीं खड़ा रहे । उस समय वह अपने हाथ से शरीर का स्पर्श न करे और न वस्त्रों को ही निचोड़े। उनके सूख जाने पर अपने शरीर का प्रतिलेखन करके विहार करे।
___ प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त जंघा का अर्थ साथल पर्यन्त पानी नहीं, परन्तु गोडे से नीचे के भाग तक पानी समझना चाहिए। क्योंकि, यदि साथल या कमर तक पानी होगा तो ऐसी स्थिति में पैरों को उठाकर आकाश में रखना कठिन होगा। और कोष में भी इस का अर्थ गोडे से नीचे का भाग ही किया है। वृत्तिकार ने भी इसी बात को पुष्ट किया है। अतः जानु का अर्थ जंघा या गोडे तक पानी का होना ही युक्तिसंगत प्रतीत होता है। .
नदी पार करने के पश्चात् साधु को किस प्रकार चलना चाहिए, इस सम्बन्ध में सूत्रकार कहते
मूलम्- से भिक्खू वा० गामा० दूइज्जमाणे नो मट्टियागएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय २, विकुज्जिय २, विफालिय २ उम्मग्गेण हरियवहाए, गच्छिज्जा जमेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु, माइट्ठाणं संफासे नो एवं करिज्जा से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहिज्जा तओ० सं० गामा०॥से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से वप्पाणि वा फ० पा० तो• अ. अग्गलपासगाणि वा गड्डाओ वा दरीओ वा सइ परक्कमे संजयामेव परिक्कमिज्जा नो उज्जु केवली से तत्थ परक्कममाणे पयलिज्ज वा २ से तत्थ पयलमाणे वा २ रुक्खाणि वा गुच्छाणि वा गुम्माणि वा लयाओ वा वल्लीओ वा तणाणि वा गहणाणि वा हरियाणि वा अवलंबिय २ उत्तरिज्जा, जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छंति ते पाणी जाइज्जा २, तओ सं• अवलंबिय २ उत्तरिजा तओ सं० गामा दू । से भिक्खू वा• गा दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा सगडाणि वा रहाणि वा सचक्काणि वा परचक्काणि वा से णं वा विरूवरूवं संनिरुद्धं पेहाए सइ परक्कमे सं० नो उ०,सेणं परोसेणागओ वइज्जा आउसंतो! एसणं समणो सेणाए अभिनिवारियं करेइ, से णं बाहाए गहाय आगसह,सणं
१ 'जंघा (स्त्री) जांघ, जानु के नीचे का भाग।प्राकृ श•म• पृ० ४२८ ।