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तृतीय अध्ययन, उद्देशक २
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छाया- स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्तराले तस्य जंघासंतार्यमुदकं स्यात्, सः पूर्वमेव सशीर्षोपरिकं कायं पादं च प्रमृज्य २ एकं पादं जले कृत्वा- एकं पादं स्थले कृत्वाततः संयतमेव उदके यथाऽऽयं रीयेत्। स भिक्षुः यथार्यं रीयमाणो (गच्छन्) न हस्तेन हस्तं यावद् अनासादयन् ततः संयतमेव जंघासन्तार्यमुदकं यथार्य रीयेत। स भिक्षुर्वा० जंघासन्तार्यमुदकं यथार्यं रीयमाणो न साताप्रतिपत्त्या नो परिदाहप्रतिपत्त्या महतिमहालये उदके कायं व्युत्सृजेत्, ततः संयतमेव जंघासंतार्यमुदकं यथार्यं रीयेत, अथ पुनरेवं जानीयात् पारगः स्यादुदकात् तीरं प्राप्तुं, ततः संयतमेव उदकाइँण वा २ कायेन दकतीरके तिष्ठेत्। स भिक्षुर्वा० उदकाई वा कार्य सस्निग्धं वा कायं न आमृज्यात् वा न०। अथ पुनरेवं जानीयात् विगतोदकः मे कायः छिन्नस्नेहः तथाप्रकारं कायं आमृज्याद्वा० प्रतापयेद् वा ततः संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत्।
____ पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा०-साधु अथवा साध्वी। गामा० दू-ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ। से-उसके। अंतरा-मार्ग में। जंघासंतारिमे-जंघा से तैरने-पार करने योग्य। उदगे-पानी। सिया-हो तो। से-वह भिक्षु।पुव्वामेव-पहले ही।सीसोवरियंकायं-अपने शरीर को मस्तक।य-से लेकर।पाए-पैरों तकापमज्जिज्ज वा-प्रमार्जित करे और प्रमार्जित करके। एगं पायं-एक पैर को। जले किच्चा-जल में रखकर। एगं पायं-दूसरे पैर को। थले किच्चा -स्थल में-जल से बाहर रखकर। तओ-तदनन्तर। सं०-संयम-पूर्वक। उदगंसि-जल में। अहारियं-जिस प्रकार तीर्थंकरों ने ईर्यासमिति विषयक कथन किया है उसी प्रकार ।रीइजा-गमन करे।से भि०वह साधु या साध्वी। अहारियं-जंघा प्रमाण जल में ईर्यासमिति पूर्वक।रीयमाणे-चलता हुआ। नो हत्थेण हत्थं जाव-हाथ से हाथ यावत् शरीर के अवयवों का स्पर्श न करे और। अणासायमाणे-हाथ आदि का स्पर्श न करता हुआ। तओ-तदनन्तर।संजयामेव-यत्नापूर्वक। जंघासंतारिमे उदए-जंघा द्वारा तैरने-पार करने योग्य पानी में। अहारियं-जैसे तीर्थकरादि ने ईर्यासमिति का वर्णन किया है उसी प्रकार। रीइजा-उसमें गमन करे। से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। जंघासंतारिमे-जंघाप्रमाण-जंघा द्वारा तरने योग्य। उदए-जल में। अहारियं-यथार्हईर्यासमिति पूर्वक। रीयमाणे-चलता हुआ साधु। सायावडियाए-साता के लिए। परिदाहवडियाए-दाह शांति के लिए। महइमहालयंसि-बड़े विस्तृत और गहरे। उदगंसि-पानी में।कार्य-शरीर को। नो विउसिज्जाप्रविष्ट न करे,अर्थात् साता के लिए गहरेजल में प्रवेश न करे। तओ-तदनन्तर।संजयामेव-यतापूर्वक।जंघासंतारिमे उदए-जंघा-प्रमाण जल में। अहारियं-यथार्ह-ईर्यासमिति पूर्वक। रीएज्जा-चले गमन करे। अह पुण एवं जाणिज्जा-अथ पुनः इस प्रकार जाने, यथा। पारए सिया-मैं उपधि के साथ पार हो सकता हूं। तब उपधि का परित्याग न करे और। उदगाओ-जल में से।तीरं-तीर को। पाउणित्तए-प्राप्त करे। तओ-तदनन्तर।संजयामेवसंयमपूर्वक। उदउल्लेण वा २ कायेण-जब तक शरीर पर से जल बिन्दु गिरते हैं और शरीर गीला है तब तक। दगतीरए चिट्ठिज्जा-पानी के किनारे पर ही खड़ा रहे। से भि०-वह साधु या साध्वी। उदउल्लं वा कायंजलाई काय को, अर्थात् जिससे जल बिन्दु टपक रहे हों तथा। ससिणिद्धं वा कायं-जल से भीगे हुए शरीर को।