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________________ २५४ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध - मूलम्- से भिक्खूवा गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो परेहिं सद्धिं परिजविय २ गामा० दूइ०, तओ० सं० गामा० दूइज्जिज्जा ॥१२३॥ छाया- स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् न परैः सार्धं परियाप्य २ ग्रामानुग्रामं गच्छेत् ततः संयतमेव ग्रामानुग्रामं गच्छेत्। पदार्थः- से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी। गामाणुगाम-एक ग्राम से दूसरे ग्राम को। दूइज्जमाणे-जाता हुआ। परेहि-गृहस्थों के। सद्धिं-साथ। परिजविय २-बहुत बोलता हुआ।नो दूइ-न जाए। तओ सं०-तदनन्तर साधु यत्नापूर्वक। गामा० दूइ-ग्रामानुग्राम विहार करे। मूलार्थ- साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गृहस्थों के साथ वार्तालाप करता हुआ गमन न करे। किन्तु ईर्यासमिति का यथाविधि पालन करता हुआ ग्रामानुग्राम विहार करे। . हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु या साध्वी को विहार करते समयं या चलते समय अपने साथ के अन्य साधु से या गृहस्थ से बातें नहीं करनी चाहिएं। क्योंकि, बातें करने से मार्ग में आने वाले जीव-जन्तुओं को बचाया नहीं जा सकेगा तथा मार्ग का सम्यक्तया अवलोकन भी नहीं हो सकेगा। आगम में यहां तक कहा गया है कि साधु को चलते समय पांचों तरह का स्वाध्याय- १ वाचना, २ पृच्छना, ३ परियटना, ४ अनुप्रेक्षा और ५ धर्मकथा का स्वाध्याय भी नहीं करना चाहिए। इस तरह अपने योगों को सब ओर से हटाकर ईर्यासमिति का पालन करना चाहिए। ____ जिस नदी में जंघा प्रमाण पानी हो उस नदी को साधु किस तरह पार करे, इस विषय को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्- से भिक्खू वा. गामा० दू० अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिज्जा २ एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा तओ सं उदगंसि अहारियं रीएज्जा॥से भिक्खू वा अहारियं रीयमाणे नो हत्थेण हत्थं जाव आणासायमाणे तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज।से भिक्खू वा जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे नो सायावडियाए नो परिदाहवडियाए महइ महालयंसि उदयंसि कायं विउसिज्जा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा, अह पुण एवं जाणिज्जा पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए, तओ संजयामेव उदउल्लेण वा २ काएण दगतीरए चिट्ठिज्जा॥से भि. उदउल्लं वा कार्य ससि कायं नो आमज्जिज्ज वा नो० अह पु० विगओदए मे काए छिन्नसिणेहे तहप्पगारं कायं आमज्जिज्ज वा० पयाविज वा तओ सं० गामा० दूइ ॥१२४॥ १ उत्तराध्ययन सूत्र, २४,८।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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