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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध परियारणाए आउट्टाविजा पुत्तं खलु सा लभिजा ओयस्सिं तेयस्सिं वच्चस्सिं जसस्सिं संपराइयं आलोयणदरसणिजं, एयप्पगारं निग्घोसं सुच्चा निसम्म तासिं च णं अन्नयरी सड्ढी तं तवस्सिं भिक्खुं मेहुणधम्मपडियारणाए आउट्टाविज्जा, अह भिक्खूणं पु० जं तहप्पगारे सा० उ० नो ठा० ३ चेइजा। एयं खलु तस्स०॥ पढमा सिज्जा सम्मत्ता॥७१॥
छाया- आदानमेतत् भिक्षोः गृहपतिभिः सार्द्ध संवसतः इह खलु गृहपतन्यः वा गृहपतिदुहितरो वा गृहपतिस्नुषा वा गृहपतिधात्र्यो वा गृहपतिदास्यो वा गृहपतिकर्मकर्यो वा, तासां च एवं उक्तपूर्वं भवति-ये इमे श्रमणा भगवन्तः यावद् उपरता मैथुनाद्धर्मात् नो खलु एतेषां कल्पते मैथुनधर्मपरिचारणया आकुटयितुं-अभिमुखं कर्तुम्। या च खलु एतैः सार्द्ध मैथुनधर्मपरिचारणया आकुट्टियेत्-अभिमुखं कुर्वीत पुत्रं खलु लभेत-ओजस्विनं, तेजस्विनं, वर्चस्विनं, यशस्विनं संपरायं आलोकं दर्शनीयं, एतत् प्रकारं निर्घोषं श्रुत्वा निशम्य तासां च अन्यतरा श्राद्धी तं तपस्विनं भिक्षू मैथुनधर्मपरिचारणायामभिमुखं कुर्यात्, अथ भिक्षुणां पूर्वोपदिष्टं यत् तथाप्रकारे सागारिके उपाश्रये नो स्थानं वा ३ चेतयेत्। एतत् खलु तस्य भिक्षोः भिक्षुक्याः वा सामग्र्यम्। प्रथमा शय्या समाप्ता। .
पदार्थः- आयाणमेयं-यह कर्म बन्धन का कारण है। भिक्खुस्स-भिक्षु को। गाहावईहिं सद्धिंगृहस्थों के साथ। संवसमाणस्स-बसते हुए को, ये दोष उत्पन्न हो सकते हैं, यथा। इह खलु-निश्चय ही सागारिक उपाश्रय में। गाहावइणीओ वा-गृहपति की भार्याएं अथवा। गाहावइधूयाओ-गृहपति की पुत्रियां। गाहावइसुण्हाओ-गृहपति की पुत्रवधुएं। गाहावइधाइओ वा-गृहपित की धायमाताएं अथवा। गाहावइदासीओ-गृहपति की दासियां अथवा। गाहावइकम्मकरीओ वा-गृहपति का काम करने वाली अनुचरिएं।णंवाक्यालंकार में है। च-फिर। तासिं-उन्हों का। एवं-इस प्रकार। वुत्तपुव्वं भवइ-पहले ही यह कथन होता है अर्थात् वे परस्पर इस प्रकार वार्तालाप करते हैं। जे इमे-जो ये। भगवंतो समणा-पूज्य श्रमण हैं। जाव-यावत्। मेहुणाओ धम्माओ-मैथुन धर्म से। उवरया भवंति-सर्वथा उपरत रहते हैं अर्थात् ये मैथुन धर्म का कभी सेवन नहीं करते । खलु-निश्चय ही। एएसिं-इनको। मेहुणधम्म-मैथुन धर्म के। परियारणाए-सेवनार्थ-सेवन करने के लिए। आउट्टित्तए-सन्मुख होना। नो कप्पइ-नहीं कल्पता, किन्तु। य-और। जा-जो स्त्री। एएहिं सद्धिंइनके साथ। मेहुणधम्म-मैथुन धर्म के।परियारणाए-सेवन के लिए।आउट्टाविजा-सन्मुख करे अर्थात मैथुन सेवन करे। खलु-निश्चय ही। सा-वह स्त्री। ओयस्सिं-ओजस्वी-बलवान। तेयस्सिं-तेजस्वी तेज वाला। वच्चस्सिं-वर्चस्वी-रूपवान।जसस्सिं-यशस्वी-यशवाला। संपराइयं-संग्राम में शूरवीर।आलोयणदरसणिजंआलोकनीय और दर्शनीय। पुत्तं-पुत्र को।लभिजा-प्राप्त करती है। एयप्पगारं-इस प्रकार के। निग्घोसं-शब्द को। सुच्चा-सुनकर। निसम्म-और विचार कर-हृदय में धारण कर। तासिं च णं-उनमें से। अन्नयरी-कोई एक। सड्ढी-स्त्री। तं-उस। तवस्सिं-तपस्वी। भिक्खुं-भिक्षु को। मेहुणधम्मपडियारणाए-मैथुन धर्म के सेवनार्थ। आउट्टाविजा-सन्मुख करे। अह-अथ। भिक्खूणं-भिक्षुओं को। पु०-तीर्थकरादि ने पहले ही यह