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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध उक्त वृत्ति में पुद्गल' शब्द का जो मांस अर्थ किया है, वह भी युक्ति संगत नहीं है। क्योंकि जब अस्थि शब्द का गुठली अर्थ स्पष्ट परिलक्षित होता है, तो ऐसी स्थिति में पुद्गल शब्द मांस परक कैसे हो सकता है। जिसमें बहुत अस्थियाँ (गुठलियां ) हों ऐसे पुद्गल का तात्पर्य बहुत गुठलियों वाला मांस नहीं, प्रत्युत बहुत गुठलियों वाला फलों का गुद्दा ही होगा। अर्द्धमागधी कोष में भी इसका अर्थ- गर्भ (फलों का गुद्दा) फल के मध्य का मनोरम अंश किया गया है। आगमों में साधु के लिए कहीं भी मांस ग्रहण करने का उल्लेख नहीं किया गया है। अनेक स्थलों पर निषेध अवश्य किया है। साधु की आहार विधि के वर्णन में कहीं भी मांस आहार के ग्रहण का उल्लेख नहीं मिलता है। यहां हम कुछ पाठों का उल्लेख कर दें तो यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि उक्त सूत्र में प्रयुक्त शब्द फलों के अर्थ से संबन्धित हैं। वे पाठ इस प्रकार हैं अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा तुच्छाहारा अन्तजीवी, पन्तजीवी आयाम्बिलिया, पुरिमड्ढिया निव्विगइया अमज्जमंसासिणो नो नियामरसभोई । - सूत्रकृताङ्ग द्वि श्रु० द्वि० अ० । सूत्रकृताङ्ग सूत्र के इस पाठ में मुनि के अन्य विशेषणों के साथ 'अमज्जमंसासिणो' यह विशेषण भी दिया है, जिसका आशय है कि- साधु कभी मद्य और मांस का सेवन न करे। क्या इतने पर भी जैन भिक्षु को मांसाहारी कहने का साहस किया जा सकता है ? और भी देखिए - जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए खीरं वा दहिं वाणवणीयं वा सप्पं वा गुलं वा खंडं वा सक्करं वा मच्छंडियं वा अण्णयरं वा पणीयं आहारं आहारेइ, आहारंतं वा साइज्जइ । १३८ निशीथ सूत्र के इस पाठ का भाव यह है कि- 'साधु मैथुन के लिए दूध, दही, मक्खन, घी, गुड़, खांड और शर्करा आदि पौष्टिक पदार्थ का कभी सेवन न करे। उक्त सूत्र में साधु के खाने के पदार्थ में मांस को बिल्कुल नहीं गिना, इससे स्पष्ट है कि जैन आगमों का आशय साधु को मांस खाने के निषेध में है । और भी - कप्पइ मे समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेण- असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकम्बलपायपुच्छणेणं पीढफलयसिज्जासंथारएणं ओसहभेसज्जेण य पडिलाभेमाणस्स विहरित्तए । त्तिकट्टु इमं एारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ । - उपा० दशा० प्र० अ० सूत्र ८ । प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर के पास आनन्द श्रावक ने साधु को आहार देने का नियम लिया है। इस पाठ में साधु को क्या-क्या आहार देना चाहिए, यह लिखा है। इसमें अशन आदि का तो उल्लेख है परन्तु मांस देने का उल्लेख नहीं है। अगर भिक्षुओं में मांस खाने की भी प्रथा होती तो उसका भी १ २ अर्द्धमागधी कोष; भाग ३, पृष्ठ ५९५ । निशीथ सूत्र ६ उद्देशक ७९ सूत्र ।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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