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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्,
द्वितीय श्रुतस्कन्ध
रुचिकर होता है। इसमें से अस्थि (बीच का कठिन भाग) निकाल कर प्रयोग करने से लाभदायक होता
है ।
'अज' शब्द का वर्तमान में सामान्य विद्वान बकरे एवं विष्णु के अर्थ में प्रयोग करते हैं । परन्तु, यह शब्द इसके अतिरिक्त अन्य अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता रहा है । जैसे - सुवर्णमाक्षिक धातु, पुराने धान्य, ,जो अंकुरित होने के काल को अतिक्रान्त कर चुके हैं।
इसी तरह 'कपोत' शब्द केवल कबूतर का वाचक नहीं रहा है । परन्तु, सुरमे एवं सज्जी (खार) के लिए भी कपोत शब्द का प्रयोग होता रहा है। क्योंकि इन पदार्थों का कपोत जैसा रंग होने के कारण इन्हें कपोत शब्द से अभिव्यक्त करते थे ।
श्यामा, गोपी, गोपवधू इन शब्दों का प्रयोग गोप कन्या या ग्वालों की स्त्री के लिए ही प्रयोग न होकर कृष्ण - सारिवा वनस्पति के लिए भी प्रयोग होता था । धवला - सारिवा नामक वनस्पति को गोपी और गोप कन्या कहा जाता था रे ।
श्वेत और कृष्ण कापोतिका शब्दों से पाठक सफेद और काले मादा कबूतर का ही अर्थ समझेंगे, परन्तु वैद्यक ग्रन्थों में इनका अन्य अर्थों में प्रयोग हुआ है । कल्पद्रुम कोष में लिखा है कि जो • स्वल्प आकार और लाल अंग वाली होती है, वह श्वेत कापोतिका कहलाती है। श्वेत कापोतिका वनस्पति दो पत्तों वाली और कन्द के मूल में उत्पन्न होने वाली, ईषद् (थोड़ी) रक्त (लाल) तथा कृष्ण पिंगला, हाथ भर ऊंची, गाय के नाक जैसी और फणधारी सर्प के आकार वाली, क्षारयुक्त, रोंगटे वाली, कोमल स्पर्श वाली और गन्ने जैसी मीठी होती है ।
इसी प्रकार के स्वरूप एवं रस वाली कृष्ण कापोतिका होती है। वह (कृष्ण कापोतिका) काले सांप जैसी वाराही कन्द के मूल में उत्पन्न होती है। वह एक पत्ते वाली महावीर्य दायिनी और बहुत काले अंजन समूह जैसी काली होती है। उसके पत्ते मध्य से उत्पन्न प्ररोह पर लगे हुए, गहरे नील मयूरपंख के समान होते हैं और वह बारह पत्तों के छत्र वाली, राक्षसों की नाशक, कन्द-मूल से उत्पन्न होने वाली और जरा-मरण को निवारण करने वाली ये दोनों कापोतिकाएं होती हैं ।
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कर्पासं फलमत्युष्णं, कषायं मधुरं गुरु । वातश्लेमहरं रुच्यं, विशेषेणास्थिवर्जितम् ॥
शालिग्रामौषध शब्द सागर ।
कृष्णा तु सारिवा श्यामा, गोपी गोपवधूश्च सा । धवला सारिवा गोपी, गोपकन्या च सारिवा ॥
- क्षेमकुतूहले ।
- भावप्रकाश निघण्टु । स्वल्पाकारा लोहितांगा, श्वेतकापोतिकोच्यते । द्विर्णिनी मूलमावा-मरूणां कृष्णपिंगलाम् ॥.....