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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ८ से। आवीलियाण-गुठली आदि को दूर करने के लिए एक बार छानकर। परिवीलियाण-बार-बार छानकर। परिसावियाण-गुठली आदि को निकाल कर।आहटु-इस प्रकार से उस धोवन को लाकर। दलइजा-दे तो। तहप्पगारं-इस प्रकार के। पाणगजायं-जल को। अफा०-अप्रासुक जानकर। लाभे संते-मिलने पर भी। नो पडिगाहिज्जा-ग्रहण न करे।
मूलार्थ-गृहस्थ के घर में पानी के निमित्त प्रवेश करने पर साधु या साध्वी जल के विषय में इन बातों को जाने। जैसे कि-आम्रफल का पानी, अम्बाडगफल का पानी, कपित्थ फल का पानी, मातुलिंग फल का पानी, द्राक्षा का पानी, अनार का पानी, खजूर का पानी, नारियल का पानी, करीर का पानी, बदरी फल-बेर का पानी, आमले का पानी और इमली का पानी, तथा इसी प्रकार का अन्य पानी, जो कि गुठली सहित, छाल सहित और बीज सहित-बीज के साथ मिश्रित है, उसे यदि गृहस्थ भिक्षु के निमित्त बांस की छलनी से, वस्त्र से या बालों की छलनी से, एक बार अथवा अनेक बार छान कर और उसमें रहे हुए गुठली छाल और बीजादि को छलनी के द्वारा अलग करके उसे दे तो साधु इस प्रकार के जल को अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में २१ प्रकार के प्रासुक पानी का उल्लेख किया गया है। उसमें आम्र फल आदि के धोक्न पानी के विषय में बताया गया है कि यदि कोई गृहस्थ आम्र आदि को धोने के पश्चात् उस पानी को छान रहा है और उसमें रहे हुए गुठली छाल एवं बीज आदि को निकाल रहा है, तो साधु को उक्त पानी नहीं लेना चाहिए। क्योंकि वह वनस्पतिकायिक (बीज, गुठली आदि) जीवों से युक्त होने के कारण निर्दोष एवं ग्राह्य नहीं है।
प्रस्तुत सूत्र में अस्थि' शब्द गुठली के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। क्योंकि आम्र के साथ उसका प्रयोग होने के कारण उसका गुठली अर्थ ही घटित होता है। द्राक्षा की अपेक्षा त्वक्-छाल, अनार आदि की अपेक्षा से बीज शब्द का प्रयोग हुआ है।
__प्रस्तुत सूत्र का तात्पर्य यह है कि आम्र आदि फलों का धोया हुआ पानी एवं रस यदि गुठली, बीज आदि से युक्त है और उसे बांस की बनाई गई टोकरी या गाय के बालों की बनाई गई छलनी या अन्य किसी पदार्थ से निर्मित छलनी या वस्त्र आदि से एक बार या एक से अधिक बार छानकर तथा उसमें से गुठली, बीज आदि को निकाल कर दे तो वह पानी या रस साधु के लिए अग्राह्य है। क्योंकि इस तरह का पानी उद्गमादि दोषों से युक्त होता है। अतः साधु को ऐसा जल अनेषणीय होने के कारण ग्रहण नहीं करना चाहिए।
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उद्गम के दोष १६ प्रकार के बताए गए हैं
आहाक़म्मुद्देसि पूतिकम्मे अमीसजाए अ। ठवणा पाहुडियाए पाओअर कीय पामिच्चे। परियट्टिए अभिहडे उब्भिन्ने मालोहडे इअ। अच्छेज्जे अणिसिढे अज्झोअरए अ सोलसमे।
- श्री आचारांग सूत्र वृत्ति।