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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध अपने स्थान में स्थित साधु को भौतिक पदार्थों से किस तरह अनासक्त रहना चाहिए, इस बात का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्-से भिक्खू वा २ आगंतारेसु वा आरामागारेसुवा गाहावइगिहेसु वा परियावसहेसु वा अन्नगंधाणि वा पाणगंधाणि वा सुरभिगंधाणि वा आघाय २ से तत्थ आसायपडियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने अहो गंधो २ नो गंधमाघाइजा॥४४॥
छाया- स भिक्षुर्वा २ आगंत्रगारेषु वा आरामागारेषु वा गृहपतिगृहेषु वा पर्यावसथेषु वा अन्नगन्धान् वा पानगन्धान् वा सुरभिगन्धान् वा आघ्राय २ स तत्र आस्वादनप्रतिज्ञया मूर्छितो गृद्धो ग्रथितोऽध्युपपन्नः (सन्) अहो-गन्धः २ न गन्धं जिनेत्।
पदार्थ- से-वह। भिक्खू वा-भिक्षु-साधु अथवा साध्वी। आगंतारेसु वा-धर्मशालाओं में। आरामागारेसु वा-अथवा उद्यान शालाओं में। गाहावइगिहेसु वा-अथवा गृहस्थों के घरों में। परियावसहेसु वा-अथवा भिक्षुओं के मठों में अवस्थित-ठहरा हुआ हो तो उस समय। अन्नगंधाणि वा-अन्न की गन्ध को। पाणगन्धाणि वा-अथवा पानी की गन्ध को।सुरभिगन्धाणि वा-केसर-कस्तूरी आदि की सुगन्ध को।आघाय २-सूंघकर।से-वह भिक्षु। तत्थ-उन सुवासित पदार्थों में।आसायपडियाए-आस्वादन की प्रतिज्ञा से।मुच्छिएमूर्छित। गिद्धे-गृद्ध। गढिए-ग्रथित। अज्झोववन्ने-आसक्त होता हुआ।अहो गंधो २-कि यह सुगन्ध कैसी मीठी एवं सुन्दर है ऐसे कहता हुआ। गंधं-उस गंध को। नो आघाइज्जा-ग्रहण न करे-तूंचे नहीं।
मूलार्थ-धर्मशालाओं में, आरामशालाओं में, गृहस्थों के घरों में या परिव्राजकों के मठों में ठहरा हुआ साधु या साध्वी अन्न एवं पानी की तथा सुगन्धित पदार्थों कस्तूरी आदि की गन्ध को सूंघ कर उस गन्ध के आस्वादन की इच्छा से उसमें मूर्छित, गृद्धित, ग्रथित और आसक्त होकर कि वाह ! क्या ही अच्छी सुगन्धि है, कहता हुआ उस गन्ध की सुवास न ले।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के मकान में, परिव्राजक-संन्यासी के मठ में अथवा किसी भी निर्दोष एवं एषणीय स्थान में ठहरा हुआ साधु अनासक्त भाव से अपनी साधना में संलग्न रहे। यदि उक्त स्थानों के पास स्वादिष्ट अन्न एवं पानी या अन्य सुवासित पदार्थों की सुहावनी सुवास आती हो तो वहां स्थित साधु उसमें आसक्त होकर उस सुवास को ग्रहण न करे और न यह कहे कि क्या ही मधुर एवं सुहावनी सुवास आ रही है। परन्तु, वह अपने मन आदि योगों को उस ओर से हटाकर अपनी साधना में - स्वाध्याय, ध्यान, चिन्तन-मनन आदि में लगा दे।
अब सूत्रकार फिर से आहार ग्रहण करने के सम्बन्ध में कहते हैं
मूलम्-से भिक्खू वा २ से जं. सालुयं वा विरालियं वा सासवनालियं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं अफासुः।से भिक्खू वा० से जं पुण पिप्पलिं वा पिप्पलिचुण्णं वा मिरियं वा मिरियचुण्णं वा सिंगबेरं वा