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प्रथम अध्ययन पिण्डैषणा ..
अष्टम उद्देशक
सप्तम उद्देशक के अन्त में प्रासुक पानी के विषय में बताया गया है और प्रस्तुत उद्देशक में भी इसी विषय का और विस्तार से विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा २ से जं पुण पाणगजायं जाणिजा तंजहाअंबपाणगंवा १० अंबाडगपाणगंवा ११ कविठ्ठपाण०१२ माउलिंगपा० १३ मुद्दियापा० १४ दालिमपा० १५ खजूरपा० १६ नालियेरपा० १७ करीरपा० १८ कोलपा० १९ आमलपा० २० चिंचापा० २१ अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणगजातं सअट्ठियं सकणुयं सबीयगं अस्संजए भिक्खुपडियाए छब्बेण वा दूसेण वा वालगेण वा आवीलियाण परिवीलियाण परिसावियाण आहटु दलइज्जा तहप्पगारं पाणगजायं अफा० लाभे संते नो पडिगाहिजा॥४३॥
___ छाया- स भिक्षुर्वा तद् यत् पुनः पानकजातं जानीयात् तद्यथा-आम्रपानकं वा १० आम्रातकपानकं वा ११ कपित्थपानकं १२ मातुलिंगपानकं १३ मृद्वीकापानकं १४ दाडिमपानकं १५ खजूरपानकं १६ नालिकेरपानकं १७ करीरपानकं १८ कोलपानकं १९ आमलपानकं २० चिंचापानकं २१ अन्यतरत् वा तथाप्रकारं पानकजातं सास्थिकं सकणुकं सबीजकं असंयतः भिक्षुप्रतिज्ञया छब्बकेण वा दूष्येण वा वालकेन वा आपीड्य परिपीड्य परिस्राव्य आहृत्य दद्यात् तथाप्रकारं पानकजातं अप्रा० लाभे सति न प्रतिगृण्हीयात्। .
पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर।से-वह। पुणफिर जं-उस।पाणगजायं-अचित्त पानी के सम्बन्ध में। जाणिज्जा-जाने। तंजहा-जैसे कि।अंबपाणगं वाआम्र फल का धोवन।अंबाडगपाणगं वा-अम्बाहड़ फल विशेष का धोवन। कविठ्ठपाण-कपित्थ फल का धोवन।माउलिंगपा-मातुलिंग का धोवन।मुद्दियापा०-द्राक्षा का धोवन। दालिमपा०-अनार का धोवन या रस। खजूरपा०-खजूर का धोवन। नालियेरपा०-नारियल का धोवन।करीरपा-करीर का धोवन।कोलपा-बदरी फल-बेरों का धोवन।आमलपा-आमले का धोवन।चिंचापा०-इमली का धोवन-पानी।अन्नयरंवा-अन्यतर। तहप्पगारं-इसी प्रकार का कोई। पाणगजायं-जल विशेष।सअट्ठियं-अस्थि-गुठली के सहित हो।सकणुयंवनस्पति छाल के सहित हो। सबीयं-बीज सहित हो और। अस्संजए-असंयत-गृहस्था भिक्खुपडियाए-भिक्षु के लिए। छब्बेण वा-छलनी से। दूसेण वा-वस्त्र से अथवा। वालगेण वा-गवादि के बालों से बनी हुई छलनी