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पारिभाषिक शब्दकोश
909 - उदीरणा-जो कर्म अभी तक उदय में नहीं आए हैं, उन्हें विशेष प्रक्रिया के द्वारा समय से पहले ही उदय में ले आने का नाम उदीरणा है।
___ उद्देशक-अध्ययन के अनेक विभागों में से एक विभाग। अध्ययन में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न विषयों में से अभिनव विषय को नए शीर्षक से प्रारम्भ करने की पद्धति।
उपकरण-वस्त्र-पात्र आदि साधन या सामग्री। उपदेष्टा-उपदेशक.। उपधान-तप-साधना की एक प्रक्रिया।
उपयोग-आत्मा को जानने एवं देखने की शक्ति, जिसे दर्शन और ज्ञान भी कहते हैं।
उपसर्ग-किसी देव-दानव या मानव द्वारा दिया जाने वाला कष्ट। उपशम-शांत, राग-द्वेष एवं काषायिक भावों को उपशांत कर देना। उपादेय-स्वीकार करने योग्य। उष्ण योनि-जिस उत्पत्ति स्थान में उष्ण-गरम स्पर्श पाया जाता है। ऋजु-सरल, निष्कपट। एक देश-एक भाग, एक हिस्सा। एक शाटक-एक वस्त्र।
एषणा के दोष-आहार के वे दोष जो अनुरागी भक्त एवं स्वाद लोलुप साधु दोनों के द्वारा लगाए लाते हैं।
ओघ संज्ञा-जीव की अविकसित एवं अव्यक्त चेतना अवस्था। औदयिक भाव-कर्म प्रकृतियों का उदय भाव रहना।
औदारिक-हड्डी, मांस-मज्जा, रक्त, वीर्य आदि से युक्त स्थूल शरीर, जो मनुष्य और तिर्यंच में पाया जाता है।
औनोदर्य-अल्पाहार, क्षुधा-भूख से कम आहार करना। औपपातिक-उत्पत्तिशील, जन्मांतर में संक्रमण करने वाला या देव और नारकी।