________________
नवम अध्ययन, उद्देशक 4
891
___ पदार्थ-अदुवा-अथवा। माहणं-ब्राह्मण को। च-और। समणं-शाक्यदि भिक्षु। वा-अथवा। गामपिंडोलगं च और ग्राम के भिखारी। वा-अथवा। अतिहिं वा-अतिथि। सोवाग-चाण्डाल । वा-अथवा। मूसियारिं-विडाल-बिल्ली आदि। वा-अथवा। कुकुरं-कुत्ता। अवि-समुच्चयार्थक है। विट्ठियं-नाना प्रकार के प्राणी। पुरओ-आगे उपस्थित हों तो उनकी वृत्ति का भंग न करते हुए भिक्षार्थ गमन करते थे। - मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर ब्राह्मण, श्रमण, गांव के भिखारी, अतिथि, चांडाल, श्वान और नाना प्रकार के अन्य जीव यदि खड़े हों तो उनकी वृत्ति का भंग न करते हुए भिक्षा के लिए नहीं जाते थे। हिन्दी-विवेचन
'इस गाथा में पूर्व गाथा की बात को पूरी करते हुए बताया गया है कि किसी गृहस्थ के द्वार पर यदि कोई ब्राह्मण, बौद्ध भिक्षु, परिव्राजक, संन्यासी, शूद्र आदि खड़े होते या बिल्ली, कुत्ता आदि खड़े होते तो भगवान उनको उल्लंघन कर किसी के घर ., में प्रवेश नहीं करते थे। क्योंकि इससे उनकी वृत्ति का व्यवच्छेद होता था। उनके अन्तराय लगने से उनके मन में अनेक संकल्प-विकल्प उठते, द्वेष-भाव पैदा होता। इसलिए भगवान इन सब दोषों को टालते हुए आहार के लिए घरों में प्रवेश करते थे।
भगवान की भिक्षा-वृत्ति पर और प्रकाश उालते हुए सूत्रकार कहते हैं. . मूलम् - वित्तिछेयं वज्जतो, तेसिमप्पत्तियं परिहरन्तो।
मंदं परक्कमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था॥12॥ छाया- वृतिच्छेदं वर्जयन तेषामप्रत्ययं परिहरन।
मदं पराक्रमते, भगवान् अहिंसन् ग्रासमेषितवान् ॥ पदार्थ-भगवं-भगवान। तेसिं-उन जीवों की। वित्तिछेयं-वृत्ति छेदन का। वज्जंतो-त्याग करते हुए तथा उनके। अप्पत्तियं-वास एवं अप्रीति को। परिहरन्तोदूर करते हुए। मंदं-शनैः-शनैः। परक्कमे-पराक्रम करते हुए तथा पर जीवों की। अहिंसमाणो-हिंसा न करते हुए। घासमेसित्था-आहार-पानी की गवेषणा करते थे।