SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध निरभिमानता भी प्रकट होती है। चार ज्ञान और चौदह पूर्वो के ज्ञाता एवं आगमों के सूत्रकार होने पर भी उन्होंने यों नहीं कहा कि मैं कहता हूँ, परन्तु यही कहा कि जैसा भगवान के मुंह से सुना है, वैसा ही कह रहा हूँ। महापुरुषों की यही विशेषता होती है कि वे अहंभाव से सदा दूर रहते हैं। उनके मन में अपने आप को बड़ा बताने की कामना नहीं रहती। अस्तु, 'सुयं मे' ये पद आर्य सुधर्मा स्वामी की विनयशीलता एवं भगवान महावीर के प्रति रही हुई प्रगाढ़ श्रद्धा-भक्ति के सूचक हैं। ____ “आउसं!” इस पद का अर्थ होता है-हे आयुष्मन्! यहां आयुष्मन् शब्द से जम्बू स्वामी को सम्बोधित किया गया है। अतः यह सम्बोधन पद जम्बू स्वामी का विशेषण है। जबकि मूल सूत्र में विशेष्य पद का निर्देश नहीं किया गया है, फिर भी विशेष्य पद का अध्याहार कर लिया जाता है। क्योंकि, जब भी कोई वक्ता कुछ सुनाता है तो किसी श्रोता को ही सुनाता है। यहां आर्य सुधर्मा स्वामी आचारांग सूत्र सुना रहे हैं और उसके श्रोता हैं जम्बू स्वामी। इस बात को हम पीछे की पंक्तियों में बता आए हैं कि जम्बू की आगम-श्रवण करने की जिज्ञासा को शान्त करने के लिए ही आर्य सुधर्मा स्वामी ने आचारांग सूत्र को सुनाना शुरू किया। इससे स्पष्ट होता है कि उक्त संबोधन का विशेष्य पद जम्बू स्वामी ही हैं। इस तरह विशेष्य पद का अध्याहार कर लेने पर अर्थ होगा-हे आयुष्मन् जम्बू! " संस्कृत-व्याकरण के अनुसार अतिशय-दीर्घ अर्थ में ‘आयुष्' शब्द से 'मतुप्' प्रत्यय होकर आयुष्मान् शब्द बनता है । इस तरह आयुष्मान् का अर्थ हुआ–दीर्घजीची। बड़ी आयु वाले व्यक्ति को दीर्घजीवी कहते हैं। श्री जम्बू स्वामी को दीर्घजीवी कहने के पीछे तीन कारण हैं। प्रथम तो यह है कि जिस समय आर्य सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी को आचारांग सूत्र का वर्णन सुनाने लगे, उस समय वे बड़ी उम्र के थे, लघु वय के नहीं। अतः आर्य सुधर्मा स्वामी उन्हें आयुष्मन् शब्द से संबोधित करके उनकी आयुगत परिपक्वता बताकर, उनमें श्रुतज्ञान तथा उपदेश श्रवण, ग्रहण, 1. भूम-निन्दा-प्रशंसासु, नित्ययोगेऽतिशायने।। संसर्गेऽस्ति विवक्षायां, भवन्ति मतुबादयः (वा. 3183) सिद्धान्तकौमुदी। अतिशयितुमायुरस्य इति आयुष्मान्। इति व्याख्यासुधाख्य-व्याख्यायां व्याख्यातमेतदमरकोषे। ..
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy