________________
नवम अध्ययन, उद्देशक 4 .
879
भगवान के तप का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- ओमोयरियं चाएइ, अपुढेंवि भगवं रोगेहिं।
पुढे वा अपुढे वा नो से साइज्जई तेइच्छं॥1॥ छाया- अवमौदर्यं शक्नोति, अस्पृष्टोपि भगवान् रोगैः।
स्पृष्टो वा अस्पृष्टो वा न स स्वादयति चिकित्साम्॥ · पदार्थ-भगवं-भगवान । ओमोयरियं-उनोदरी तप करने को। चाएइ-समर्थ . थे। अपुछेवि रोगेहि-रोगों के स्पर्श न होने पर भी। वा-अथवा। पुट्ठो-रोगों के स्पर्श होने पर भी। अपुढे वा-न होने पर भी। से-वह श्रमण भगवान महावीर । तेइच्छं-चिकित्सा को। नोसाइज्जई-नहीं चाहते थे।
मूलार्थ-भगवान महावीर रोगों के स्पर्श होने या न होने पर भी औनोदर्य तप करने में समर्थ थे। इसके अतिरिक्त श्वानादि के काटने पर या श्वासादि रोग के स्पर्शित होने पर भी वे औषध-सेवन की इच्छा नहीं करते थे।
।
।
2. तप-अवधि
(6) दो मासी(7) डेढ़ मासी(8) मास क्षमण— (9) पक्ष क्षमण(10) सर्वतोभद्रप्रतिमा (11) महाभद्रप्रतिमा(12) अष्टम(13) षष्ठ(14) भद्रप्रतिमा(15) दीक्षा दिवस(16) पारणा(17) कुल दिवस
।
संख्या उसके दिन वर्ष मास दिन
6 2 x 30 x 6 = 360, 1 -0 - 0. 2 ॥ x 30 x 2 = 90, 0 -3 - 0 12 1 x 30 x 12 = 360, 1 -0 - 72_0%x 30 x 72 = 1080, 3 -0
1 10 दिवस की = 10, 0 - 0 __1 4 दिवस की = 4, 0 -0
12 3 x 12 = 36, 0 -1 229 2 x 229 = 458, 1 -3 - __1 दो दिन की = 2, 0-0 - 2
1 एक दिन की = 1, 0 -0 - 1 349 349 दिन की = 349, 0 -11 -19 4515 वर्ष 12 मास 6 दिन 15
...जैन प्रकाश के उत्थान वीरांक में प्रकाशित
'त्रिभुवन दास मेहता' के लेख से उद्धृत
।