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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 3 हिंन्दी - विवेचन भगवान महावीर जब लाढ़ देश में पधारे तो वहां के लोगों ने उनके साथ क्रूरता का व्यवहार किया। उन्होंने भगवान को डंडों से, पत्थरों से मारा, दांतों से काटा और कुत्तों की तरह उन पर टूट पड़े। इस तरह वहां के निवासियों ने भगवान को अनेक कष्ट दिए। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि उनका जीवन कितना भयंकर था एवं उनका कर्म कितना क्रूर था । इसी अपेक्षा से वहां के लोगों को अनार्य कहा है। 867 अनार्य व्यक्तियों के हृदय में दया, प्रेम-स्नेह एवं आतिथ्य सत्कार की भावना कम होती है। इस तरह अनेक कष्ट सहने पर भी भगवान को उपयुक्त आहार नहीं मिलता था। यों भगवान तपस्या करते थे, उनका बहुत-सा समय तप में ही बीतता था और पारणे के दिन भी तुच्छ एवं रूक्ष आहार उपलब्ध होता था । T इतना कष्ट होते हुए भी भगवान ने कभी दुःख की अनुभूति नहीं की। उन्होंने उसे निवारण करने का प्रयत्न भी नहीं किया । यदि वे चाहते तो सारे बाह्य कष्टों को भगा सकते थे। उनमें बड़ी शक्ति थी। परन्तु महान् पुरुष वही होता है, जो अपनी शक्ति का उपयोग शरीर के क्षणिक सुखों के लिए न करे, आत्मा के अनन्त सुखों को प्राप्त करने के लिए करता है या जो सामर्थ्य होते हुए भी आने वाले कष्टों को हंसते हुए सह लेता है। भगवान महावीर अपने ऊपर आने वाले कष्टों को समभाव पूर्वक सहते हुए लाढ देश में विचरे, इसका उल्लेख करते हुए फिर सूत्रकार कहते हैं मूलम् - अप्पे जणे निवारेइ लूसणए सुणए दसमाणे । छुच्छुकारिंति आहंसु समणं कुक्कुडा दसंतत्ति ॥4॥ छाया अल्पः जनः निवारयति लूषकान् दशतः । छुच्छुकारेंति आहंसु श्रमणं कुर्कुरा दशन्तु इति ॥ पदार्थ - अप्पे- - बहुत थोड़े । जणे - मनुष्य ऐसे हैं, जो । लूसणाए - काटते हुए कुत्तों को । निवारेइ - हटाते हैं, प्रायः ऐसे व्यक्ति हैं जो । दसमाणे सुणए - काटते हुए कुत्तों का । छुच्छुकारिंति - छू-छू करते हुए । आहंसु - भगवान के पीछे लगाते हैं और ऐसा प्रयत्न करते हैं कि । समणं - श्रमण भगवान को । कुक्कुडा - ये कुत्ते । दसंतत्ति - काटें ।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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