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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध शास्त्रों के अध्ययन में गति-प्रगति हो सकती है। यही कारण है कि द्वादशांगी का उपदेश देते समय तीर्थंकर सबसे पहले आचार का उपदेश देते हैं और गणधर भी इसी क्रम से सूत्ररचना करते हैं। प्रस्तुत सूत्र में आचार का विस्तृत विवेचन किया गया है। साधारणतः आचार शब्द का अर्थ होता है-आचरण, अनुष्ठान। प्रस्तुत सूत्र में आचार शब्द साधु के आचरण या संयम-मर्यादा से संबद्ध है और अंग शास्त्र को कहते हैं। अतः आचार + अंग-आचारांग का यह अर्थ हुआ कि वह शास्त्र जिसमें साधु-जीवन से संबंधित आचरण या क्रिया-काण्ड का विधान किया गया है, संयम-साधना का निर्दोष मार्ग बताया गया है। आचारांग सूत्र दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। पहले श्रुतस्कंध में ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार का सूत्र-शैली में अच्छा विश्लेषण किया गया है। छोटे-छोटे सूत्रों में गंभीर अर्थ भर दिया है। दूसरे श्रुतस्कंध में प्रायः चारित्राचार का वर्णन है। विषय के अनुरूप उसकी निरूपण-शैली भी सीधी-सादी है और भाषा भी सरल रखी गई है। दोनों श्रुतस्कंधों में पच्चीस अध्ययन हैं। पहले श्रुतस्कंध में नव और दूसरे श्रुतस्कंध में सोलह अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन कई उद्देशकों में बंटा हुआ है। एक अध्ययन के अनेकों विभाग में से एक विभाग को अथवा एक अध्ययन में प्रयुक्त होने वाले अभिनव विषय को नए शीर्षक से प्रारम्भ करने की पद्धति को आगमिक भाषा में उद्देशक कहते हैं। आचारांग सूत्र के पहले श्रुतस्कंध का पहला अध्ययन सात उद्देशकों में विभक्त है, दूसरा अध्ययन छह, तीसरा और चौथा अध्ययन चार-चार, पांचवां अध्ययन छह, छठा अध्ययन पांच, सातवां अध्ययन सात', आठवां अध्ययन आठ और नवम अध्ययन चार उद्देशकों में बंटा हुआ है। इस तरह आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के 9 अध्ययनों के 51 उदेशक बनते हैं। आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में तीन चूलिकाएं हैं। प्रथम चूलिका में 10 से 16 तक, द्वितीय चूलिका में 17 से 23 तक और तृतीय चूलिका में 24वां और 25वां ये दो अध्ययन हैं। इस तरह द्वितीय श्रुतस्कंध में कुल 16 अध्ययन हैं। दसवें 1. इस अध्ययन का विच्छेद हो गया है, यह वर्तमान में उपलब्ध नहीं होता है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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