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________________ 828 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध का साधन ज्ञान है और दर्शन से उसका निश्चय होता है और त्याग का आधार चारित्र है। इस तरह रत्नत्रय की साधना से आत्मा निष्कर्म हो जाती है। आगम में बताया गया है कि आत्मा ज्ञान के द्वारा पदार्थों के यथार्थ स्वरूप को जानता है, दर्शन से उस परिज्ञात स्वरूप पर विश्वास करता है, चारित्र से आने वाले नए कर्मों के द्वार को रोकता है और तप के द्वारा पूर्व काल में बंधे हुए कर्मों को क्षय करता है। भगवान महावीर भी इन चारों तरह की साधना से युक्त थे और ज्ञान-दर्शन चारित्र एवं तप से समस्त कर्मों को क्षय करके उन्होंने निर्वाण पद को प्राप्त किया। __द्रव्य एवं भाव के भेद से उपधि दो प्रकार की है। आत्मा के साथ पदार्थों का संबन्ध द्रव्य उपधि है और राग-द्वेष आदि विकारों का सम्बन्ध भाव उपधि है। भाव उपधि से द्रव्य उपधि प्राप्त होती है और द्रव्य उपधि भाव उपधि-राग-द्वेष को बढ़ाने का कारण भी बनती है। इस तरह दोनों उपधियां संसार का कारण हैं। दोनों उपधियों का नाश कर देना ही मुक्ति है। संसारपरिभ्रमण का मूल कारण भाव उपधि है, भाव उपधि का नाश होने पर द्रव्य उपधि का नाश सुगमता से हो जाता है। इसलिए सर्वज्ञ पुरुष पहले भाव उपधि-राग-द्वेष का नाश करके वीतराग बनते हैं और उसके बाद द्रव्य उपधि का क्षय करके सिद्ध पद को प्राप्त करते हैं। . इसी विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- दुविहं समिच्च मेहावी, किरियमक्खायऽणेलिसं नाणी। आयाण सोयगइ वायसोयं, जोग च सव्वसो णच्चा॥16॥ छाया- द्विविधिं समेत्य मेधावी, क्रियामाख्यातमनीदृशं ज्ञानी। आदानं स्रोतः अतिपातस्रोतः योगं च सर्वशः ज्ञात्वा॥ ___ पदार्थ-मेहावी-बुद्धिमान सर्व भाव के ज्ञाता भगवान ने। किरियं-क्रिया कर्मों का नाश करने वाली सयंमानुष्ठान रूप। दुविहं-दो प्रकार के कर्म ईर्या प्रत्यय और साम्परायिक को। समिच्च-सम्यक्तया जानकर। अणेलिसं-अनुपम। अक्खाय-कहा है और। नाणी-ज्ञानयुक्त भगवान ने। आयाणसोयं-कर्मों के आने का स्रोत कहा है। अइवाय सोयं-अतिपात हिंसा स्रोत। च-और। जोगं1. नाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ ॥ -उत्तराध्ययन 28; 35 .
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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