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________________ ॥ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥ श्री आचारांग सूत्र प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा प्रथम उद्देशक मूलम्-सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खाय॥1॥ संस्कृत-च्छाया-श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम् । पदार्थ-आउसं!-हे आयुष्मन्!। मे सुयं-मैंने सुना है। तेणं भगवया-उस भगवान ने। एवमक्खायं-इस प्रकार कथन किया है। . मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर के पंचम गणधर, प्रथम पट्टधर-आचार्य श्री सुधर्मास्वामी अपने प्रमुख शिष्य आर्य जम्बू स्वामी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं-हे आयुष्मन्! मैंने सुना है कि उस भगवान-भगवान महावीर ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है, कहा है। हिन्दी-विवेचन भारतीय संस्कृति में साहित्य-सृजन की प्राचीन पद्धति यह रही है कि पहले मंगलाचरण करके फिर सूत्र या ग्रन्थ-रचना की जाती थी। जैनागमों एवं ग्रन्थों की रचना भी इसी पद्धति से की गई है। इस पर यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि पहले मंगलाचरण करने की परम्परा रही है, तो प्रस्तुत सूत्र में उस परंपरा को क्यों तोड़ा गया। क्योंकि, आचारांग सूत्र को प्रारम्भ करते समय मंगलाचरण तो नहीं किया गया है। 'सुयं ने आउसं!' -आदि पाठ लिखकर सूत्र आरम्भ कर दिया गया है। इससे ऐसा लगता है कि यहां सूत्रकार ने पुरातन परंपरा को नहीं निभाया है। नहीं, ऐसी बात नहीं है। यदि गहराई से सूत्र का अनुशीलन-परिशीलन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि सूत्र के आरम्भ में मंगलाचरण किया गया है। यहां मंगलाचरण के रूप में श्रुतज्ञान का उल्लेख किया गया है। अनुयोगद्वार सूत्र के पहले सूत्र में कहा
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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