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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 1 ___807 पालन किया। वस्त्र स्वीकार करने के प्रायः तीन कारण होते हैं-1-हेमन्त, सर्दी में शीत से बचने के लिए, 2-लज्जा ढकने के लिए और 3-जुगुप्सा को जीतने का सामर्थ्य न हो तो। भगवान ने इन तीनों कारणों से वस्त्र को स्वीकार नहीं किया था। वे समस्त परीषहों को जीतने में समर्थ थे और सदा परीषहों पर विजय पाते रहे हैं। परीषहों से घबराकर उन्होंने कभी भी वस्त्र का उपयोग नहीं किया। अतः उन्होंने वह वस्त्र अपने उपयोग के लिए स्वीकार नहीं किया। परन्तु पूर्व तीर्थंकरों द्वारा आचरित परम्परा को निभाने के लिए या अपने संघ में होने वाले साधु-साध्वियों के लिए आचरण का मार्ग स्पष्ट करने के लिए उन्होंने देवदूष्य वस्त्र को स्वीकार करके अपने कन्धे पर रख लिया। - सभी साधकों की बाहरी सहिष्णुता एक समान नहीं होती। सभी साधक महावीर नहीं बन सकते। इसलिए स्थविर कल्प मार्ग की आचार परम्परा को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने वस्त्र ग्रहण किया। क्योंकि साधना का सम्बन्ध आत्मा के विशुद्ध भावों से है, राग-द्वेष को क्षय करने से है। वस्त्र रखने एवं नहीं रखने से उसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता है। इसलिए भगवान महावीर ने न तो वस्त्र रखने का निषेध किया और न वस्त्र त्याग का ही निषेध किया। उन्होंने तीर्थ परम्परा को अनवरत चालू रखने के लिए वस्त्र को ग्रहण किया। इससे स्पष्ट होता है कि भगवान ने अभिनव धर्म की स्थापना नहीं की, अपितु पूर्व से चले आ रहे धर्म को आगे बढ़ाया। पूर्व के समस्त तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित त्रैकालिक सत्य का उपदेश दिया, जनता को धर्म का यथार्थ मार्ग बताया। इस प्रकार "अणुधम्मियं" पद से स्पष्ट होता है कि भगवान महावीर ने पूर्व परम्परा के अनुसार आचरण किया। वृत्तिकार ने भी इसी बात का समर्थन किया है और आगम के पाठ के उद्धरण देकर वस्त्र रखने की परम्परा का समर्थन किया है। ___ “अनुधर्मिता" शब्द का अर्थ चूर्णि में गतानुगत किया है। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान ने दीक्षा के समय एक वस्त्र रखने की परम्परा का पालन किया। चूर्णि 1. से बेमि जे य अईया, जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरहन्ता भगवन्ता जे य पव्वयन्ति जे य पव्वइस्सन्ति ते सोवही धम्मो देसिअव्वो ति कटु तित्थधम्मयाए एसाणु-धम्मिगत्ति एगं दूसमायाए पव्वइसं वा पव्वयंति वा पब्वइस्संति वा।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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