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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 7
पदार्थ । आहट्टु - अन्य साधु को लाकर । नो दलइस्सामि- नहीं दूंगा । आहडं च साइज्जिस्सामि-परन्तु उनका लाया हुआ आहार खा लूंगा 4 । जस्सणं भिक्खुस्सजिस भिक्षु का । एवं भवइ - इस प्रकार का अभिप्राय होता है । अहं च खलु - मैं । अन्नेसिं— अन्य । भिक्खूणं- भिक्षुओ को । असणं वा - अन्न-पानी, खादिम, स्वादिमादि पदार्थ। आहट्टु - लाकर । नो दलइस्सामि- नहीं दूंगा । आहडं नो साइज्जिस्सामिऔर न उनका लाया हुआ खाऊंगा ही। अब इसके अतिरिक्त अन्य अभिग्रह के विषय में कहते हैं। अहं च खलु - मैं । तेण अहाइरित्तेण - अपने अधिक लाए हुए आहार से । अहेसणिज्जेण 4 - निर्दोष आहार से । अहापरिग्गहिएणं - अपने लिए लाए हुए। असणेण वा-आहारादि चारों पदार्थों से और । अभिकख - निर्जरा का उद्देश्य करके | साहम्मियस्स - तथा सधर्मी के ऊपर उपकार । करणाय - करने के लिए उसकी। वेयावडियं-वैयावृत्य । कुज्जा - करूंगा । अहं वावि- मैं भी । तेण - उस अन्य मुनि के पास । अहाइरित्तेण - अधिक आहार आ जाने से । अहेसणिज्जेण - उसके निर्दोष आहार से। अहापरिग्गहिएणं - वह अपने लिए जो आहार लाया है, उसमें से । असणेण वा पाणेण वा 4 - अन्न- पानी आदि पदार्थ । अभिकंख - निर्जरा का उद्देश्य करके | साहम्मिएहिं - सधर्मियों के द्वारा । कीरमाणं - किए जाने वाली । वेयावडियं - वैयावृत्य को । साइज्जिस्सामि - स्वीकार भी करूंगा । लाघवियं - इस तरह कर्मों की लाघवता को । आगममाणे - जानता हुआ, अर्थात् कर्म क्षय करने के लिए । जाव - यावत् - शेष पाठ पूर्ववत् समझें । सम्मत्तमेव - सम्यग् दर्शन या समभाव • को। समभिजाणिया - सम्यक् प्रकार से जाने |
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मूलार्थ - जिस भिक्षु का यह अभिप्राय होता है कि मैं अन्य भिक्षुओं को अन्नादि चतुर्विध पदार्थ लाकर दूंगा और उनका लाया हुआ स्वीकार भी करूंगा। 2 जिस भिक्षु का इस प्रकार का अध्यवसाय होता है कि मैं अन्य भिक्षुओं को आहारादि चार प्रकार के पदार्थ लाकर दूंगा, किन्तु उनका लाया हुआ स्वीकार नहीं करूंगा । 3 जिस भिक्षु का इस प्रकार का प्रण होता है कि मैं अन्नादि चतुर्विध आहार अन्य साधु को लाकर नहीं दूंगा, किन्तु उनका लाया हुआ स्वीकार कर लूंगा। 4 जिस भिक्षु की यह प्रतिज्ञा होती है कि मैं अन्य भिक्षुओं को अन्नादि चारों पदार्थ न लाकर दूंगा और न उनका लाया हुआ स्वीकार ही करूंगा। इसके